Tuesday, December 14, 2010

'क्रिकेट को भारत का राष्ट्रीय खेल बनाने का प्रयत्न..'

अगर आप एक ही खेल को सारी अहमियत देंगे..बाकी सब को दरकिनार कर देंगे, तो सोचिये ज़रा देश का क्या होगा..?? उन खिलाड़ियों के बारे में सोचिये..जो दिन-रात कठोर साधना और मेहनत करते हैं और उनको सुविधाएं भी नहीं मिल पाती हैं..यहाँ सिर्फ एक ही खेल को मान्यता मिली हुई है..जैसे बाकी सब खेलों ने कोई पाप किया है..!! हमारा सूचना-तंत्र भी सिर्फ उन खिलाड़ियों की वाह-वाही करता है..!!!

एक तरफ कोई क्रिकेट का खेल चल रहा होगा तो सारा ध्यान वहां पर ही केन्द्रित रहेगा..चाहे दूसरी ओर अन्य खेलों में खिलाड़ी सबसे ऊँचा पुरूस्कार/सम्मान भी जीत घर आयें होंगे, उनको सिर्फ २-4 पंक्तियों की जगह मिलेगी..बाकी 'कोटा' तो क्रिकेट के लिए सुरक्षित है..!!

बेचारे समाचार-पत्र वाले भी क्या कर सकते हैं, आखिर उन्हें भी तो अपनी रोज़ी-रोटी कमानी है..फिर इसके लिए चाहे कितने खिलाड़ियों की भावना या मेहनत का बलिदान देना पड़े..किसे परवाह..?

कितनी बड़ा अपमान है..कितनी बड़ी दुविधा है..!!!

Saturday, November 27, 2010

'विलुप्त आदर्शों का चित्रण..'

आज के परिवेश में घटते आदर्शों..मूल्यों पर चिंतन..

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"सुनो..जीवन की सच्चाई..
हर क्षण बिकती अच्छाई..
विलुप्त आदर्शों का चित्रण..
बेहतर..बाँट लें यह रुबाई..!!"


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Tuesday, November 16, 2010

'मूक पशुओं की सुनो पुकार..'

आज ईद पर अनगिनत मूक पशु-पक्षियों का कृन्दन हर ओर गूँज रहा है..दया और करुणा करें..अहिंसा का मार्ग अपनाएँ.. 'जीयो और जीने दो'..!!


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"मूक पशुओं की सुनो पुकार..
करते कृन्दन..
भय व्याकुलता अशांति..
आज चहुँ ओर..
हुई व्याप्त है..

हिंसा के परमाणु बसे..
क्यूँ ह्रदय में..

प्रिय है जीवन उनको भी..
करो दान..
दो उनको 'अभयदान'..

विवेक का परिचय..
उदारता का हाव..
कृतज्ञ रहेंगे सदा..
फैलाओ करुणा भाव.!"

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Thursday, February 11, 2010

For so-called modern lovers of today...

"हसरतें दम तोड़ देती..
गर तुम ना आते..

देखो..
रंजिश कितनी शिद्दत से..
निभाई है..

हाँ..

कलाई पर नाम खुदवा तुम्हारा..
हमने वाह-वही पाई है..!!"

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Thursday, January 28, 2010

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"महंगाई का आलम छाया..इस कदर..
बेचारे मंत्री जी की जुबां..पर हुई ग़दर..

क्यूँ सत्ता का नशा..बेईमान कर जाता है..!"

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For those children..youth..who are forced to give up their childhood to execute the blueprint of 'Jehad'..!!!

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"वो मासूम अदाएँ..
वो तुतलाना..
वो हँसते हुए गिर जाना..
वो झटपट पेड़ पर चढ़ जाना..
वो दीवार फांदना..
वो नीम के झूले..
वो मिटटी में लेट जाना..
वो खिलखिलाहट..

बचपन अब कहाँ रहा..

बारूद के ढेर में..
सिमट गयीं हैं..

फ़क़त..
जेहाद की आवाजें..!"

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