Thursday, December 29, 2011

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"अमन की कोशिश..
सरहद की लकीरें..
चलो..बढ़ो आगे..
तोड़ें जंजीरें..!"

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Wednesday, December 28, 2011

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"महंगाई का आलम छाया..इस कदर..
बेचारे मंत्री जी की जुबां..पर हुई ग़दर..

क्यूँ सत्ता का नशा..बेईमान कर जाता है..!"

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Thursday, December 22, 2011

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"रिश्तों का कहर ढोती ज़िन्दगी..
हर रोज़ बेमौत मरती ज़िन्दगी..

उफ़..महँगाई की फटती चादर..!!"

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Friday, October 14, 2011

'चलो.. तर्पण करें..'

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"बिछा लहू की दीवारें..
समेट सामंतवाद के औज़ार..
लूटा भ्रष्टाचार के कतारें..
जला अंधविश्वास के गलियारे..

चलो..
निर्माण करेंगे..
एक सुरमई धरती का..
एक विशाल इतिहास का..
जीवन के हर उल्लास का..

चलो..
तर्पण करें..
'अहम्' को..
सर्वेश हो..
मातृभूमि फिर..

चलो..
स्वरुप करें जीवंत..
लिखें नयी लेखनी..
हो मानवता का सम्मान..
स्वच्छ मानसिकता..

चलो..
बढे चलो..
भारत-माँ की सुनो पुकार..
करो..
शत्रुओं का संहार..!!!"


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Sunday, September 11, 2011

'सियासी भ्रष्टाचार..'

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"बंद करो..
झूठ का व्यापार..
बहुत हुआ..
शोषण और अत्याचार..
नहीं सहेंगे..
हर ओर फैला..
सियासी भ्रष्टाचार..!!!"

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Wednesday, August 24, 2011

'सियासी फ़रियाद..'

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"उम्मीदों के साँचें..
भूल अपनी बिसात..
लौट आये कूचे..
कर सियासी फ़रियाद..!!"

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Wednesday, July 13, 2011

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"क्या मिलेगा..
फैला दहशत..
लहू-ए-रंजिश..
मासूम एहसास..
और..
सियासी दंगल..!!!"

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Thursday, June 16, 2011

'समय का प्रवाह..'




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"मंजिलों को पंख लगा..
देश की वायु को जंग लगा..

करती है सरकार..
ना जाने कैसा व्यापार..

भरती अनाज के गोदाम..
मरती जनता बे-दाम..

उठो..

जागो..

समय का प्रवाह करता..
इशारा..

थामो अधिकारों का पिटारा..
गिराओ छल कपट का गलियारा..!!!"



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Tuesday, June 14, 2011

'बेख़ौफ़ शैतां..'


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"इल्म ना हुआ..
शहादत-ए-फ़ौजी..
बेख़ौफ़ शैतां..
रूह में बसर..
सियासी-*बुलहवास..
फ़क़त..
दास्तां ये पुरानी..!!!"


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* बुलहवास = लालची..

Saturday, March 26, 2011

'मनोदशा का खेल..'





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पैसा, भावना और शब्द..यह सब क्या किसी व्यक्ति के स्वभाव को बदल सकते हैं..?? जिसके अंतर्मन की जैसी स्थिति है..वो वैसे ही रहेगी..बस तरीका बदलता है..!!

अंबानी जी स्वयं पैसा कमा रहे हैं..खर्च कर रहे हैं..तो जनता क्यूँ व्यथित हो रही है..?? चाहे वो गगनचुम्बी ईमारत में रहें या अपनी श्रीमती जी को हवाईजाहज भेंट करें..क्यूँ यहाँ सबके माथे पर बल आ जाते हैं..?? उनकी संपत्ति..उनका नजरिया..जैसे चाहें उपयोग करें..!!

जिसे देखो दूसरों की ख़ुशी से बिफर जाते हैं..अब श्रीमान वारेन बुफ्फेट को ही लीजिये..!!! भारत में बढ़ते अरबपतियों की चिंता उन्हें सता रही है..इसीलिए यहाँ यात्रा पर आयें हैं और सबको कह रहे हैं--'कृपया अपनी संपत्ति में से दान करिए..!!'...

जिसकी जैसी इच्छा..वो चाहें दान करें..उपभोग करें..किसी को क्यूँ परेशानी होती है..!!! और भारत जैसे देश में आकर यह कहना कितना उचित है..जहाँ सम्राट अशोक ने सर्वस्व त्याग दिया था..!!!! त्याग की प्रवृति तो हमारे लहू में है..!!!

क्या हम कभी अपने नेतागण से कहते हैं--'आपने बहुत धन कमा लिया..आप के पास इतनी चल-अचल संपत्ति है..अब दान कीजिये..!!! आप अब विदेश भ्रमण पर ना जाएँ..कहाँ-कहाँ धन एकत्रित किया है, रोकड़ का हिसाब दें..अपने क्षेत्र का कितना विकास किया, उसका ब्यौरा दें...!!!'

सब हमारी मनोदशा का खेल है..!!! क्यूँ हम प्रसन्न नहीं रह सकते, अगर किसी के पास ज्यादा धन है..समृद्धि है..????


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Monday, March 21, 2011

'राष्ट्रीय खेल इस 'अद्भुत खेल' की भेंट चढ़ जाएगा..'




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सबसे पहले आप राजनीति में समय की सीमा तय करवा दीजिये..उसके बाद सब कुछ लय में अपने आप आ जाएगा..!! इस सत्ता का मोह ऐसा है कि हर क्षेत्र में इसका(राजनीति में प्रयोगिग अनुसंधानिक नीतियाँ) बोलबाला है..!!!

खेल के क्षेत्र में..शिक्षा के क्षेत्र में..रोज़गार के क्षेत्र में जाइए..या फिर भोजन के सन्दर्भ में..सारी दिशाएँ इस प्रलोभन के चंगुल में फँस गए हैं..!!! जो भी एक बार यहाँ आ गया, वो बाहर जाना ही नहीं चाहता..!! 'कुर्सी' का मोह ऐसा है कि --'जान जाए पर कुर्सी ना जाए..' !!!

कैसा विलासतापूर्ण अध्याय है..जहाँ हम सब देश का विकास चाहते हैं..पर अपने हिस्से का बलिदान नहीं कर सकते..!!! कैसी विडम्बना है..!!! कैसा विधि का कालचक्र घूम रहा है..हम सब लोभ और असहिष्णुता के दलदल में इतने डूब गए हैं, कि स्वयं ही नहीं उबार पा रहे..बाकी संसार/देश के बारे में विचार कहाँ से आयें..????

कितनी योजनायें बनती हैं..कितनी ही समितियां बनायीं जातीं हैं..विचार-मंथन के लिये..!! कितना ही मनुष्य-धन लगाया जाता है..निष्कर्ष भी निकालता है..पर फिर वही 'राग' लक्ष्य से हमारा ध्यान विचलित कर देता है..!!!

खेल क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं..धन भी आवंटित होता है..परन्तु अपने गंतव्य स्थान तक कोई पहुंचता ही नहीं है..!!!! बीच डगर में ही सब समाप्त हो जाता है..!!! हमारे माननीय सत्ताधारी प्रजाति के जन मोहपाश से निकल नहीं पाते..और यह सब अज्ञानतावश हो जाता है..!!!

कुछ समय पश्चात हमारा राष्ट्रीय खेल इस 'अद्भुत खेल' की भेंट चढ़ जाएगा..और स्मृतियाँ ही शेष रहेंगीं..!!!

अब विचार करने और नीतियाँ बनाने का समय नहीं रहा..करने का समय है..!! अन्यथा कुछ शेष नहीं रहेगा..!!!


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Sunday, March 6, 2011

'किसी को कोई फरक नहीं पड़ता..'






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किसी को कोई फरक नहीं पड़ता..सब ही भ्रष्ट हैं..हसन अली जी हों या सुरेश कलमाड़ी जी..थोमस जी या बेचारे खुद मनमोहन जी..सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे..!!! इन सब बातों पर अपनी ऊर्जा का प्रवाह करने से कोई लाभ नहीं..!!


आप क्या कर सकते हैं..?? सरकार हटा सकते हैं..?? महंगाई घटा सकते हैं..?? आम आदमी को रोटी दिला सकते हैं..?? निर्दोष व्यक्ति को न्याय दिला सकते हैं..?? खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को व्यवस्थित जगह निवेश कर सकते हैं..??? आम जनता को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं..?? रोज़गार उपलब्ध करा सकते हैं..??? शिक्षा का समुचित विकास करा सकते हैं..?? शिक्षण संस्थानों का दुरूपयोग रोक सकते हैं..??? 'कर' को दूसरे देशों में जाने से रोक सकते हैं..?? एक ऐसा संगठन बना सकते हैं, जहाँ शुद्ध स्वरुप में देश के विकास के लिए नीतियाँ बन सकें..??


जाने दीजिये..!! यहाँ दिखता कुछ और है..होता कुछ और है..जो आवाज़ उठता है..वो ही मारा जाता है..!!! सब छलावा है..भ्रम है..!! सब यहाँ स्वार्थ के लिए ही जीते हैं..! जो सत्य की दुशाला पहनेगा, उसे ही व्यर्थ जीवन गँवाना पड़ेगा..!!


यहाँ बैठ कर लिखना और इस गंभीर विषय पर लिखना सरल है, परन्तु उसे निभाना और जीना उतना ही कठिन..!!!

प्रयत्न बहुत करते हैं..सफल हो जाएँ..तब समझें, 'जीवन सफल हुआ..ध्येय पूरा हुआ..!!!'


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"आशा की किरण लिए चलता हूँ..
ह्रदय में ज्योत लिये जलता हूँ..
निश्चय ही मिलेगी जीत की मिठाई..
लहू के धनुष..फौलाद के विचार मलता हूँ..!!"


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जय हिंद..!!!!

Thursday, February 24, 2011

'हर क्षेत्र भ्रष्टाचार..धोकाधड़ी..नौकरशाही..चापलूसी..से ग्रसित है..'



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समय की मांग है..आन्दोलन करना भी आवश्यक है..परन्तु क्या इस सरकार और भ्रष्ट नेताओं को मिट्टी से..सत्ता से विहीन कर सकते हैं..??? नहीं..!!!

यहाँ हर क्षेत्र भ्रष्टाचार..धोकाधड़ी..नौकरशाही..चापलूसी..लोभी जैसी तुच्छ प्रवृतियों से ग्रसित है..!! सच कहा, नेता बेचारे ही होते हैं..खुद की जेब भरने के लिये..क्या-क्या जोखिम नहीं उठाते..!!!

पर यहाँ किसको दर्द होता है..कौन परवाह करता है..???? कोई नहीं..!! किसकी कमाई से ये देश-विदेश की यात्राएं होती हैं..?? क्यूँ इन नेताओं को सुरक्षा प्रदान करी जाती है, जो स्वयं ही असुरक्षित हैं..!!! और जो स्वयं ऐसे(असुरक्षित) हैं, वो कैसे देश की रक्षा कर सकेंगे..??

हमे इन 'बेचारे' मंत्रियों की तरफ सहानुभूति रखनी चाहिए..कितना परिश्रम और दिमाग लगा कर अन्य देशों में अपना पैसा भेजते हैं..और जैसे ही किसी को भनक लग जाए..तुरंत नाम/काम बदल दूसरी दिशा में भेज देते हैं..!! सोचिये, क्या आप या हम से कोई भी ऐसा कर सकता है..??

सिर्फ पैसा कमाने से ही कुछ नहीं होता..कितने साक्षातार देने होते हैं..झूठे दाँव-पेंच लगाने होते हैं..योग्य न्यायाधीश को खरीदना पड़ता है..चल-अचल संपत्तियां का ढेर लगाना होता है..!!

एक योजना से पूरा प्रजातंत्र हिलाया जा सकता है..हम 'कर' चुकाना ही बंद कर दें.. हर तरह के 'कर'..!!!! ना सरकार को पैसा मिलेगा, ना ही हम पर इन 'ज़िम्मेदार और सत्यवादी' नेताओं को पालने के लिये कष्ट होगा..!!!

कहाँ से लाएगी सरकार पैसा..?? कहाँ से इन कठपुतलियों का नाच होगा..????


आक्रोश तो आज सबके अंतर्मन में है..परन्तु, आगे कोई आना नहीं चाहता..एक ही ढर्रे पर चलना आता है..'भेड़-चाल'..!!!!

'जो हो रहा है, होने दो..हमे क्या..??' आज पढ़े-लिखे समझदार लोग भी यहाँ सरकार में बैठे हैं..पर आज तक आपने किसी युवा की वाणी सुनी..??
कभी उनको कोई काम करते देखा..?? अपने क्षेत्र के लिये ही सही..!!!!

नहीं ना..!! ऐसा कभी होगा भी नहीं..इस सत्ता का मूल-रूप ही ऐसा है..!!!!


दक्षिण के जाने-माने विख्यात अभिनेता..श्री चिरंजीवी जी ने भी स्वय का एक दल बनाया..पर क्या हुआ...?? 'प्रजाराज्यम' को कांग्रेस के हाथों बेच दिया..!!!! और आज उनके दल की वेबसाइट http://www.prajarajyamby2009.com/ बिकाऊ है..!!!!

क्या सोचें..क्या करें..??? यहाँ किस को अपना प्रतिनिधि बना कर भेजें..??? सब एक जैसे..

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"एक ही रंग में ढले..
एक ही सुर में पले..
थामो सरकार की गाड़ी..
करो प्रार्थना अपना भाग्य फले..!!"

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सबका...यह ही राग है..!!!!



जय हिंद..!!!

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स्वदेशी और स्वरोजगार--आज के इस युग में क्या संभव है..??




कुछ प्रश्न हमे स्वयं से पूछने होंगे..! क्या हम स्वदेशी सामान 'सम्मान ' की दृष्टि से देखते हैं..?? आज आप कहीं भी जाइए..किसी भी वस्तु को उठा लीजिये..सब पर विदेशी छाया है..!! आप वस्त्र की बात करें, खाने-पीने की बात करें, विधुत-यंत्रों की बात करें, चल संपत्ति की बात करें...सब पर 'विदेशी-रंग' चढ़ा है..!!!!

कैसे क्या संभव हो सकेगा..?? आज का युवा स्वयं को गर्वित समझाता है..अगर उसने कोई विदेशी वस्तु का तमगा पहन रखा है..!! भारतीय सभ्यता अपना मूल-रंग और रूप खो रही है..हमारे लिये विदेशी आचार-विचार बहुत महत्वपूर्ण हैं..फिर चाहे वह नव-वर्ष का उत्सव हो या किसी के प्रति अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिये एक विशेष दिवस..!!!

क्या हम कभी इस विचारधारा से उभर पायेंगे..???

स्व-रोज़गार की बात ..क्या आज के युवक के लिये संभव है..कि वो अपनी बढ़ती हुई आवश्यकता के लिये ऐसे-वैसे काम ना करें.. 'वैश्वीकरण' का भुगतान/हर्जाना सबको ही भरना पड़ता है और पड़ेगा..!!!



चलिए श्री गणेश करना है..एक विचारणीय और महत्वपूर्ण बात--सिर्फ यहाँ मंथन करने से कुछ नहीं होगा..नीतियाँ और सूत्रों से परिपूर्ण कार्यक्रम की रूपरेखा तो हर दूसरे दिवस यहाँ बनतीं हैं..बस कार्य करना भूल जाते हैं..!!

Thursday, January 20, 2011

China...The Big Question..!!!!!

Probably..!! The Chinese Government is working day-in and day-out to ousted every other nation on this planet..!! Look at the strategy, the EXIM Policy, the grass-root level development..!!!

It needs a brain-storming session to look deep into the Well..!!!!

You think of anything, and you will get it..!! Want to have a mobile-phone with your name, wait for just 5 days..& you are ready to sell your brand..!!!

They are peeping into your culture, eating out the domestic industries, killing the basic skills, ruining other economies...!!!!! What else can you ask for..????

'चलो..अपना ईमां बेच आते हैं..'


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"चलो आज फिर..
अपना ईमां बेच आते हैं..

भर-भर के आयेंगे तोहफे..
जमा स्विज़ बैंक में करवाएंगे..
खलिश हो अवाम की..

या..

दहशतगर्दी का नश्तर..
हमको लेना अपना खज़ाना..
आवाम पर चाहे..
दांव हो लगाना..

क्या करेगा हाकिम*..
और बेफिक्र ज़माना..
फिज़ा को भी भरना होता है..
जुर्माना..

है ना..
कितना हसीं..
अपनी खालिक** को..
खंज़र से चीर जाना..!!"

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*हाकिम = न्यायाधीश/Judge
**खालिक= जन्मदाता/Creator

Tuesday, January 18, 2011

'दरिंदगी का कारोबार..'




जीवन की भौतिक विलासता ने अपने पैर मजबूती से पसार लिए हैं..इसका भुगतान पर्यावरण को अपनी देह का त्याग करके चुकाना पड़ रहा है..!!


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"टंगे हैं जिस्म पर..
ख्व़ाब कई..
छिल गयी है..
रूह की ज़मीं भी..
अब तो..
बंद करो..
दरिंदगी का कारोबार...!!"

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*इस चित्र का श्रेय हमारे मित्र, श्री ओमेन्द्र जी को जाता है..!! सादर धन्यवाद..!!