Monday, October 14, 2013


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"सर जी..आप सदैव सत्य लिखते हैं..
देश की राजनीतिक बीमारी पर तीर कसते हैं..

आज मुझे..ज़रा ये भी तो बताइए..
कितने यहाँ आपकी-मेरी बात सुनते हैं..

क्यूँ उनको असर होता नहीं..
शहीद उनका कोई होता नहीं..

क्या फितरत हो चली राष्ट्र-नेताओं की..
बिन पैसे कुछ होता नहीं..

आखिर कब तक ये किस्सा चलेगा..
आखिर कब तक इन्साफ बिकेगा..

न कल कुछ हुआ है..ना आगे कुछ होगा..
६६ वर्ष बाद भी असह्य-सा देश-ह्रदय होगा..

चीरते हैं अपने ही कुछ पाक-पुजारी..
कितनी रातें सैनिकों ने जागे गुजारीं..

कौन लिखेगा ऐसी क़ुरबानी..
बाकी कहाँ खून में रवानी..

शर्मिंदा हूँ..न रख सका भारत-माँ की लाज..
ए-माँ..गुनाह मेरा भी है..न करना मुझे माफ़..!!"

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---एक माननीय महोदय के शब्दों पर कुछ यूँ ही हमारे भी शब्द चल पड़े..

Saturday, June 15, 2013


हम सब इसी बात का दंश ले जीते हैं..

मैं भी आज तक इस अनुभूति से स्वयं को बाहर नहीं ला पायी कि मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ.. जब पाँचवी कक्षा में थी हमारी एक अध्यापिका थीं..वो सदैव ही कहा करतीं थीं--'तुम लोग बड़े होकर अपने लिए SC /ST का सर्टिफिकेट बनवा लेना..ये आराक्षण ऐसे तो तुम्हें पढ़ने नहीं देगा..!!' उनके बेटे ने किसी सामान्य इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया था, जबकि वो बहुत मेधावी छात्र थे..हमें आने वाले हादसे से बचाना चाहतीं थीं..पर नियति कौन बदल सकता है..

क्या संभव है हम सब मिलकर इस पूरी व्यवस्था को चुनौती दें और बिना आरक्षण का एक नया तंत्र लायें??? पर जानती हूँ..'कुछ स्वप्न जीवन भर के लिए होते हैं, हमारी स्मृति उन्हें पोषित करती है..ये ही उनका आधार होता है..!! वो कभी पूर्ण नहीं होते..!!!!'

किसको दोष दें इस प्रणाली के लिए, ऐसे तंत्र के लिए जहाँ मेधावी और योग्य छात्रों/व्यक्तियों का मोल ही नहीं है..??? अगर हम पुरजोर प्रयत्न करें इस शुद्ध करने की..तब भी नहीं होगा..!!! ये ही यथार्थ है..ये ही लक्ष्मण/सीता/राम/कृष्ण/चाणक्य रेखा है..



क्यूँ दुखती राग पर हाथ रख रहे हैं..?? कितना झेला है..कितना सहा है..मेरे जैसे कितने ही होंगे.. सब जी लेते हैं इस श्राप के साथ..मैं भी भुगतभोगी हूँ, बड़ी बहना.. ऐसा ही होता है.. बचपन से सपना संजोया था कि अपने ड्रीम MBA स्कूल में पढूँगी, पर जब समय आया तो हम सामान्य वर्ग के थे..सो वंचित रह गए..!!! और तो और जिस दूसरे कॉलेज में प्रवेश मिला..वहाँ भी राजनीति का शिकार हुई..!! कहाँ-कहाँ तक हटायेंगे इस विष-बेल को जो जकड़ चुकी है हमारा तन और मन..!! मस्तिष्क तो स्वत: ही मान लेता है अपना दोष..!!!


इसीलिए अच्छा यही है..इस तंत्र से बाहर रहिये..अपने काम से काम रखिये.. क्यूँकि आप ये युद्ध अकेले नहीं लड़ सकते..!!! पूरे राष्ट्र में इसकी जड़ें बहुत गहरी पैठ जमा चुकीं हैं..जो उसे हटाने का प्रयास मात्र भी करेगा..वो चुक जाएगा..!!


नकराने से क्या होगा?? आपका परिश्रम व्यर्थ ही गया होगा न?? किसीको कोई लेना-देना नहीं..पूर्ण रूप से हम अशुद्ध और भ्रष्ट हो चुके हैं..!!! कोई मूल्य नहीं..!! भूल जाइये..किसी से अपेक्षा मत रखिये.. पर हाँ, अपने अन्दर इन सबको फलने-फूलने दीजिएगा अन्यथा हममें और बाकी जनों में विशेष अंतर नहीं रहेगा..!!

संस्कृति, ज्ञान, आचार-विचार, सम्मान, आथित्य, व्यवहार, करुन, स्नेह, दया, सहयोग, मदद..सब इतिहास है..!!!

Friday, March 8, 2013

इन बेतुके दिवसों का महत्व..अजीब संयोग है..हर कोई हर तरफ आज के दिन सो-कॉल्ड इंटरनेशनल वीमेन'स डे के सन्दर्भ में लिख रहा है..??

बात इतनी सी है..किसी को यहाँ कोई फर्क नहीं पड़ता और किसी में भी किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आने वाला.. ये सब तो दुनिया के लिए दिखावा है, marketing tacts होते हैं..और वैसे भी हम सबको आदत होती है, भेड़-चाल की..!!!!

ना ही महिलायों के खिलाफ कोई अपराध कम होने वाले हैं और ना ही सोच बदलने वाली है.. वो 'वास्तु-मात्र' मानी जाती हैं..जब तक स्वयं नारी अपनी रक्षा, सुरक्षा और सम्मान के लिए नहीं उठेगी, लड़ेगी...कुछ नहीं बदलेगा...कुछ भी नहीं..


.सम्मान करना है तो हर दिन हर क्षण करिए...सिर्फ एक दिन ही क्यूँ निर्धारित किया जाता है..??

यहाँ कोई परवाह नहीं करता.. अगर कोई लड़का किसी लड़की को छेड़ रहा होता है..तो भी आस-पास वाले लोग सोचते हैं--हमें क्या करना..?? क्यूँ मुसीबत मोल लें..?? कौन बीच में पड़े अपने खुद ही बहुत झंझट हैं..??? पर वो ये भूल जाते हैं..कल कोई अपना भी इस का शिकार हो सकता है..वो एक छोटा-सा पौधा स्वरुप विचार एक ठोस मनोवृति बन जाता है.. फिर, बार-बार ऐसे करना आदत में ही शामिल हो जाता है..

किसी भी मसले का हल..घर से ही निकल सकता है, आपकी जड़ों से ही..!! कार्य कठिन है..पर संभव होने कि शक्ति भी स्वयं में समाहित रखता है..



इंटरनेशनल वीमेन'स डे को भूल जाना ही बेहतर है.. जब तक हम कुछ कर नहीं सकते उनके लिए, तो ये सब झूठे दिखावे भी ना करें..!!!

और हाँ, नारियों से भी निवेदन हैं..अपना हर दिन..हर क्षण पूर्ण आत्म-सम्मान और अपनी ही इच्छा अनुरूप जीयें, ना कि इस एक दिन के दिखावे पर मोहित हों..

Saturday, January 19, 2013

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"सारे रस्ते बंद, यातायात की अव्यवस्था, शहर का सौन्दर्यीकरण, चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल, झंडे, होर्डिंग्स, विज्ञापन से लैस हर कोना, जनता को होती असुविधा, आवागमन में परेशानी, सारे होटल्स ब्लाक(सैलानियों का 'पीक सीज़न' है ये)...

किसे चिंता है..?? हमें सरकार बचानी है, पुन: सत्ता में आना है..!!! इसकी एवज़ में कोई कुछ भी झेले..ये उसकी स्वयं की गल्ती है..!!!"

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Monday, January 7, 2013

भारत माँ की चीत्कार..

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"हर तरफ लुट रहा..
खून हर गली बह रहा..
छलनी होता ह्रदय मेरा..
क्या किसी को नहीं दिख रहा..!!!"

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आक्रोश वहाँ नयी चेतना, नयी क्रान्ति को जन्म देता ही..जहाँ का जन-सैलाब कुछ कर गुजरने का माद्दा रखता है, जहाँ लहू की बूँदें उद्वेलित करती हैं, जहाँ जिगर पर गोलियों से देशभक्ति का जज़्बा बहता है, जहाँ जातिवाद पर हिंसा भड़क देश के अहित में भाषण नहीं होते, जहाँ भाई-भाई देश की तरक्की चाहता है, जहाँ हर स्त्री देश में सुरक्षित महसूस कर देश की अर्थ-व्यवस्था मज़बूत करने में सहयोग देती है, जहाँ राजनीति व्यवसाय नहीं होता, जहाँ राष्ट्र-नेता बंदूकधारियों से अपनी रक्षा नहीं करवाते..


हम सब ऐसे ही हैं--असंवेदनशील, कोई फर्क नहीं पड़ता..कितनी ही लाशें सामने बिछ जायें, कितने ही ज्वार-भाटे आयें, कितने ही बम फटें, कितने ही अपमानित हो जायें हमारा स्त्री-वर्ग, कितना ही गले घुटे हमारे संस्कारों का, कितना ही शोषण हो हमारे बड़े-बुजुर्गों का, कितना ही लूटा जाए गरीबों को/मध्यमवर्गीय परिवारों को, कितनी ही महँगाई बढ़ जाये, कितनी ही लूट-पाट हो जाये..............पर हमें फर्क नहीं पड़ेगा..हम सब ऐसे ही हैं और रहेंगे..!!!
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ना किसी में हिम्मत है..ना किसी के पास जिगर है.. दो दिन के लिए ये सारे ज्वालामुखी उबलते हैं, फटने का जिगर किसी का भी नहीं है..!! सरकार को या व्यवस्था को दोषी क्यूँ करार दिया जाए, जब हम खुद अपने हितों/ अधिकारों के लिए खड़े ही नहीं हो सकते..लड़ना तो दूर, बहुत दूर, की बात है..!!

शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को झूठा दिलासा देने जैसा ही है, जहाँ हम सब मन के हर छोर में ये तख्ती लटका चुके हैं कि जो भी हो, जैसा भी हो..हम जी लेंगे.. थोड़ा शोर-शराबा करेंगे, दंगा-फ़साद होगा, सरकार घबरायेगी, संविधान को भी उल्टा-सीधा कहा जाएगा, क़ानून की भी धज्जियाँ उड़ेंगी, फिर थोड़े दिन बाद.......सब पहले जैसा हो जाएगा..!!!!!

ये ही किस्मत हमारी है..ये ही हमारी व्यवस्था है..ये ही हमारी भूल है..!!!

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