Tuesday, August 28, 2012
...
"माँ माँगती है..
लेखा-जोखा..
छलनी होती..
हर क्षण..
करुणामयी झोली..
जिसकी..
क्या कोई व्यंग..
सुशोभित कर सकेगा..
इसका धराताल..
कब तक बिकेगी..
अपने *जन-कर से..
मर्यादा की थाल..
कब तक सजेगी..
चिता मानवीय-मूल्यों की..
पहन विश्वास की खाल..
लज्जाती क्यूँ नहीं..
ए-मानुष तेरी नयन-धार..
लुटती संस्कृति डाल-डाल..!!"
*जन-कर = संतान के हाथ..
...
प्रियंकाभिलाषी..
२८-०८१-२०१२..
Monday, August 27, 2012
Sunday, August 12, 2012
आप दूसरे खेलों की तरफ ध्यान ही नहीं लगायेंगे तो कहाँ से उनका उद्धार होगा..?? मेरा विचार है कि क्रिकेट को ही अपना राष्ट्रीय खेल बना लेना चाहिए..कम से कम राष्ट्र सम्मान तो सुरक्षित रहेगा..!!!
यहाँ दूसरे खेलों को जिस निर्ममता से अग्निकुंड में भस्म किया जाता है, उन सब की कोई होड़ नहीं..!!! क्यूँ ऐसा वातावरण नहीं बनाया जाता जहाँ पर हर खेल को प्रोत्साहित किया जाए, ज़रूरतमंद खिलाड़ियों को सुविधाएं दीं जाएँ..??
सरकार पहले अपनी गद्दी तो जमा लें, मन भर के धन बटोर ले..फिर सोचेगी अगले चुनाव में कैसे वापस आया जाए..?? कब बदलाव आएगा..?? कब विचार-शैली बदलेगी..?? कब हम राष्ट्र-हित में सोचेंगे और कदम आगे बदयेंगे..?? कब उन्नति का बीज हमारे दिमाग में उगेगा, जिससे देश की आर्थिक-स्थिति और मज़बूत हो..???
आखिर कब होगा ये सब..??? कभी होगा भी या नहीं.???
यहाँ दूसरे खेलों को जिस निर्ममता से अग्निकुंड में भस्म किया जाता है, उन सब की कोई होड़ नहीं..!!! क्यूँ ऐसा वातावरण नहीं बनाया जाता जहाँ पर हर खेल को प्रोत्साहित किया जाए, ज़रूरतमंद खिलाड़ियों को सुविधाएं दीं जाएँ..??
सरकार पहले अपनी गद्दी तो जमा लें, मन भर के धन बटोर ले..फिर सोचेगी अगले चुनाव में कैसे वापस आया जाए..?? कब बदलाव आएगा..?? कब विचार-शैली बदलेगी..?? कब हम राष्ट्र-हित में सोचेंगे और कदम आगे बदयेंगे..?? कब उन्नति का बीज हमारे दिमाग में उगेगा, जिससे देश की आर्थिक-स्थिति और मज़बूत हो..???
आखिर कब होगा ये सब..??? कभी होगा भी या नहीं.???
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