Monday, October 14, 2013
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"सर जी..आप सदैव सत्य लिखते हैं..
देश की राजनीतिक बीमारी पर तीर कसते हैं..
आज मुझे..ज़रा ये भी तो बताइए..
कितने यहाँ आपकी-मेरी बात सुनते हैं..
क्यूँ उनको असर होता नहीं..
शहीद उनका कोई होता नहीं..
क्या फितरत हो चली राष्ट्र-नेताओं की..
बिन पैसे कुछ होता नहीं..
आखिर कब तक ये किस्सा चलेगा..
आखिर कब तक इन्साफ बिकेगा..
न कल कुछ हुआ है..ना आगे कुछ होगा..
६६ वर्ष बाद भी असह्य-सा देश-ह्रदय होगा..
चीरते हैं अपने ही कुछ पाक-पुजारी..
कितनी रातें सैनिकों ने जागे गुजारीं..
कौन लिखेगा ऐसी क़ुरबानी..
बाकी कहाँ खून में रवानी..
शर्मिंदा हूँ..न रख सका भारत-माँ की लाज..
ए-माँ..गुनाह मेरा भी है..न करना मुझे माफ़..!!"
...
---एक माननीय महोदय के शब्दों पर कुछ यूँ ही हमारे भी शब्द चल पड़े..
Saturday, June 15, 2013
हम सब इसी बात का दंश ले जीते हैं..
मैं भी आज तक इस अनुभूति से स्वयं को बाहर नहीं ला पायी कि मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ.. जब पाँचवी कक्षा में थी हमारी एक अध्यापिका थीं..वो सदैव ही कहा करतीं थीं--'तुम लोग बड़े होकर अपने लिए SC /ST का सर्टिफिकेट बनवा लेना..ये आराक्षण ऐसे तो तुम्हें पढ़ने नहीं देगा..!!' उनके बेटे ने किसी सामान्य इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश लिया था, जबकि वो बहुत मेधावी छात्र थे..हमें आने वाले हादसे से बचाना चाहतीं थीं..पर नियति कौन बदल सकता है..
क्या संभव है हम सब मिलकर इस पूरी व्यवस्था को चुनौती दें और बिना आरक्षण का एक नया तंत्र लायें??? पर जानती हूँ..'कुछ स्वप्न जीवन भर के लिए होते हैं, हमारी स्मृति उन्हें पोषित करती है..ये ही उनका आधार होता है..!! वो कभी पूर्ण नहीं होते..!!!!'
किसको दोष दें इस प्रणाली के लिए, ऐसे तंत्र के लिए जहाँ मेधावी और योग्य छात्रों/व्यक्तियों का मोल ही नहीं है..??? अगर हम पुरजोर प्रयत्न करें इस शुद्ध करने की..तब भी नहीं होगा..!!! ये ही यथार्थ है..ये ही लक्ष्मण/सीता/राम/कृष्ण/चाणक्य रेखा है..
क्यूँ दुखती राग पर हाथ रख रहे हैं..?? कितना झेला है..कितना सहा है..मेरे जैसे कितने ही होंगे.. सब जी लेते हैं इस श्राप के साथ..मैं भी भुगतभोगी हूँ, बड़ी बहना.. ऐसा ही होता है.. बचपन से सपना संजोया था कि अपने ड्रीम MBA स्कूल में पढूँगी, पर जब समय आया तो हम सामान्य वर्ग के थे..सो वंचित रह गए..!!! और तो और जिस दूसरे कॉलेज में प्रवेश मिला..वहाँ भी राजनीति का शिकार हुई..!! कहाँ-कहाँ तक हटायेंगे इस विष-बेल को जो जकड़ चुकी है हमारा तन और मन..!! मस्तिष्क तो स्वत: ही मान लेता है अपना दोष..!!!
इसीलिए अच्छा यही है..इस तंत्र से बाहर रहिये..अपने काम से काम रखिये.. क्यूँकि आप ये युद्ध अकेले नहीं लड़ सकते..!!! पूरे राष्ट्र में इसकी जड़ें बहुत गहरी पैठ जमा चुकीं हैं..जो उसे हटाने का प्रयास मात्र भी करेगा..वो चुक जाएगा..!!
नकराने से क्या होगा?? आपका परिश्रम व्यर्थ ही गया होगा न?? किसीको कोई लेना-देना नहीं..पूर्ण रूप से हम अशुद्ध और भ्रष्ट हो चुके हैं..!!! कोई मूल्य नहीं..!! भूल जाइये..किसी से अपेक्षा मत रखिये.. पर हाँ, अपने अन्दर इन सबको फलने-फूलने दीजिएगा अन्यथा हममें और बाकी जनों में विशेष अंतर नहीं रहेगा..!!
संस्कृति, ज्ञान, आचार-विचार, सम्मान, आथित्य, व्यवहार, करुन, स्नेह, दया, सहयोग, मदद..सब इतिहास है..!!!
Friday, March 8, 2013
इन बेतुके दिवसों का महत्व..अजीब संयोग है..हर कोई हर तरफ आज के दिन सो-कॉल्ड इंटरनेशनल वीमेन'स डे के सन्दर्भ में लिख रहा है..??
बात इतनी सी है..किसी को यहाँ कोई फर्क नहीं पड़ता और किसी में भी किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आने वाला.. ये सब तो दुनिया के लिए दिखावा है, marketing tacts होते हैं..और वैसे भी हम सबको आदत होती है, भेड़-चाल की..!!!!
ना ही महिलायों के खिलाफ कोई अपराध कम होने वाले हैं और ना ही सोच बदलने वाली है.. वो 'वास्तु-मात्र' मानी जाती हैं..जब तक स्वयं नारी अपनी रक्षा, सुरक्षा और सम्मान के लिए नहीं उठेगी, लड़ेगी...कुछ नहीं बदलेगा...कुछ भी नहीं..
.सम्मान करना है तो हर दिन हर क्षण करिए...सिर्फ एक दिन ही क्यूँ निर्धारित किया जाता है..??
यहाँ कोई परवाह नहीं करता.. अगर कोई लड़का किसी लड़की को छेड़ रहा होता है..तो भी आस-पास वाले लोग सोचते हैं--हमें क्या करना..?? क्यूँ मुसीबत मोल लें..?? कौन बीच में पड़े अपने खुद ही बहुत झंझट हैं..??? पर वो ये भूल जाते हैं..कल कोई अपना भी इस का शिकार हो सकता है..वो एक छोटा-सा पौधा स्वरुप विचार एक ठोस मनोवृति बन जाता है.. फिर, बार-बार ऐसे करना आदत में ही शामिल हो जाता है..
किसी भी मसले का हल..घर से ही निकल सकता है, आपकी जड़ों से ही..!! कार्य कठिन है..पर संभव होने कि शक्ति भी स्वयं में समाहित रखता है..
इंटरनेशनल वीमेन'स डे को भूल जाना ही बेहतर है.. जब तक हम कुछ कर नहीं सकते उनके लिए, तो ये सब झूठे दिखावे भी ना करें..!!!
और हाँ, नारियों से भी निवेदन हैं..अपना हर दिन..हर क्षण पूर्ण आत्म-सम्मान और अपनी ही इच्छा अनुरूप जीयें, ना कि इस एक दिन के दिखावे पर मोहित हों..
बात इतनी सी है..किसी को यहाँ कोई फर्क नहीं पड़ता और किसी में भी किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आने वाला.. ये सब तो दुनिया के लिए दिखावा है, marketing tacts होते हैं..और वैसे भी हम सबको आदत होती है, भेड़-चाल की..!!!!
ना ही महिलायों के खिलाफ कोई अपराध कम होने वाले हैं और ना ही सोच बदलने वाली है.. वो 'वास्तु-मात्र' मानी जाती हैं..जब तक स्वयं नारी अपनी रक्षा, सुरक्षा और सम्मान के लिए नहीं उठेगी, लड़ेगी...कुछ नहीं बदलेगा...कुछ भी नहीं..
.सम्मान करना है तो हर दिन हर क्षण करिए...सिर्फ एक दिन ही क्यूँ निर्धारित किया जाता है..??
यहाँ कोई परवाह नहीं करता.. अगर कोई लड़का किसी लड़की को छेड़ रहा होता है..तो भी आस-पास वाले लोग सोचते हैं--हमें क्या करना..?? क्यूँ मुसीबत मोल लें..?? कौन बीच में पड़े अपने खुद ही बहुत झंझट हैं..??? पर वो ये भूल जाते हैं..कल कोई अपना भी इस का शिकार हो सकता है..वो एक छोटा-सा पौधा स्वरुप विचार एक ठोस मनोवृति बन जाता है.. फिर, बार-बार ऐसे करना आदत में ही शामिल हो जाता है..
किसी भी मसले का हल..घर से ही निकल सकता है, आपकी जड़ों से ही..!! कार्य कठिन है..पर संभव होने कि शक्ति भी स्वयं में समाहित रखता है..
इंटरनेशनल वीमेन'स डे को भूल जाना ही बेहतर है.. जब तक हम कुछ कर नहीं सकते उनके लिए, तो ये सब झूठे दिखावे भी ना करें..!!!
और हाँ, नारियों से भी निवेदन हैं..अपना हर दिन..हर क्षण पूर्ण आत्म-सम्मान और अपनी ही इच्छा अनुरूप जीयें, ना कि इस एक दिन के दिखावे पर मोहित हों..
Saturday, January 19, 2013
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"सारे रस्ते बंद, यातायात की अव्यवस्था, शहर का सौन्दर्यीकरण, चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल, झंडे, होर्डिंग्स, विज्ञापन से लैस हर कोना, जनता को होती असुविधा, आवागमन में परेशानी, सारे होटल्स ब्लाक(सैलानियों का 'पीक सीज़न' है ये)...
किसे चिंता है..?? हमें सरकार बचानी है, पुन: सत्ता में आना है..!!! इसकी एवज़ में कोई कुछ भी झेले..ये उसकी स्वयं की गल्ती है..!!!"
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"सारे रस्ते बंद, यातायात की अव्यवस्था, शहर का सौन्दर्यीकरण, चप्पे-चप्पे पर पुलिस बल, झंडे, होर्डिंग्स, विज्ञापन से लैस हर कोना, जनता को होती असुविधा, आवागमन में परेशानी, सारे होटल्स ब्लाक(सैलानियों का 'पीक सीज़न' है ये)...
किसे चिंता है..?? हमें सरकार बचानी है, पुन: सत्ता में आना है..!!! इसकी एवज़ में कोई कुछ भी झेले..ये उसकी स्वयं की गल्ती है..!!!"
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Monday, January 7, 2013
आक्रोश वहाँ नयी चेतना, नयी क्रान्ति को जन्म देता ही..जहाँ का जन-सैलाब कुछ कर गुजरने का माद्दा रखता है, जहाँ लहू की बूँदें उद्वेलित करती हैं, जहाँ जिगर पर गोलियों से देशभक्ति का जज़्बा बहता है, जहाँ जातिवाद पर हिंसा भड़क देश के अहित में भाषण नहीं होते, जहाँ भाई-भाई देश की तरक्की चाहता है, जहाँ हर स्त्री देश में सुरक्षित महसूस कर देश की अर्थ-व्यवस्था मज़बूत करने में सहयोग देती है, जहाँ राजनीति व्यवसाय नहीं होता, जहाँ राष्ट्र-नेता बंदूकधारियों से अपनी रक्षा नहीं करवाते..
हम सब ऐसे ही हैं--असंवेदनशील, कोई फर्क नहीं पड़ता..कितनी ही लाशें सामने बिछ जायें, कितने ही ज्वार-भाटे आयें, कितने ही बम फटें, कितने ही अपमानित हो जायें हमारा स्त्री-वर्ग, कितना ही गले घुटे हमारे संस्कारों का, कितना ही शोषण हो हमारे बड़े-बुजुर्गों का, कितना ही लूटा जाए गरीबों को/मध्यमवर्गीय परिवारों को, कितनी ही महँगाई बढ़ जाये, कितनी ही लूट-पाट हो जाये..............पर हमें फर्क नहीं पड़ेगा..हम सब ऐसे ही हैं और रहेंगे..!!!
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ना किसी में हिम्मत है..ना किसी के पास जिगर है.. दो दिन के लिए ये सारे ज्वालामुखी उबलते हैं, फटने का जिगर किसी का भी नहीं है..!! सरकार को या व्यवस्था को दोषी क्यूँ करार दिया जाए, जब हम खुद अपने हितों/ अधिकारों के लिए खड़े ही नहीं हो सकते..लड़ना तो दूर, बहुत दूर, की बात है..!!
शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को झूठा दिलासा देने जैसा ही है, जहाँ हम सब मन के हर छोर में ये तख्ती लटका चुके हैं कि जो भी हो, जैसा भी हो..हम जी लेंगे.. थोड़ा शोर-शराबा करेंगे, दंगा-फ़साद होगा, सरकार घबरायेगी, संविधान को भी उल्टा-सीधा कहा जाएगा, क़ानून की भी धज्जियाँ उड़ेंगी, फिर थोड़े दिन बाद.......सब पहले जैसा हो जाएगा..!!!!!
ये ही किस्मत हमारी है..ये ही हमारी व्यवस्था है..ये ही हमारी भूल है..!!!
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ना किसी में हिम्मत है..ना किसी के पास जिगर है.. दो दिन के लिए ये सारे ज्वालामुखी उबलते हैं, फटने का जिगर किसी का भी नहीं है..!! सरकार को या व्यवस्था को दोषी क्यूँ करार दिया जाए, जब हम खुद अपने हितों/ अधिकारों के लिए खड़े ही नहीं हो सकते..लड़ना तो दूर, बहुत दूर, की बात है..!!
शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को झूठा दिलासा देने जैसा ही है, जहाँ हम सब मन के हर छोर में ये तख्ती लटका चुके हैं कि जो भी हो, जैसा भी हो..हम जी लेंगे.. थोड़ा शोर-शराबा करेंगे, दंगा-फ़साद होगा, सरकार घबरायेगी, संविधान को भी उल्टा-सीधा कहा जाएगा, क़ानून की भी धज्जियाँ उड़ेंगी, फिर थोड़े दिन बाद.......सब पहले जैसा हो जाएगा..!!!!!
ये ही किस्मत हमारी है..ये ही हमारी व्यवस्था है..ये ही हमारी भूल है..!!!
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Sunday, December 23, 2012
यहाँ गलती किसकी है..?? दोष किसका है..?? समाज का, इंसान का, सरकार का, नीतियों का, पुलिस..???? क्यूँ हम स्वयं खड़े नहीं हो पाते अपने अधिकारों के लिए..?? क्यूँ सह रहे हैं हम ये तानाशाही..??? क्या जनता में इतना साहस, बल नहीं कि उखाड़ सके सरकार की धज्जियाँ..???
जब तक हम बुलंदी से नहीं इन व्यर्थ की नीतियों को हटा नहीं देंगे, कुछ नहीं होगा...
समय आ गया है..इस कायरता और लाचारी को उठा फेंकने का.. कब तक इन झूठी साँसारिक कड़ियों में जकड़े रहेंगे..??? जिस अधिकार से राष्ट्र-सेवकों को राष्ट्र की सेवा का अवसर दिया है, उसी अधिकार से खदेड़ो इन मानवता के शत्रुओं को..??? वैसे, पाया क्या है हमने इन नेताओं को हम पर राज करने का अधिकार देकर..???? आतंक, महँगाई, असुरक्षा, मानवहीनता, असंवेदनशीलता....... है ना..????
अगर राजनीति ही मर चुकी है..किसी भी नेता में सामने आने का दंभ नहीं, आखिर क्यूँ फिर हम उन्हें अपना नेता कह रहे हैं..?? क्यूँ नहीं सत्ता पलट होती..???
Thursday, September 27, 2012
माननीय प्रधानमंत्री के अस्सी वर्ष पूर्ण करने के मंगल दिवस पर उनको ढ़ेर सारी मंगल-कामनायें..!!
इस उपलक्ष्य में कुछ पंक्तियाँ यूँ ही बह चलीं हैं..
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"अस्सी में भी छूटता नहीं..
मोह ये कैसा..
जग सारा छान किया..
ना क्षेत्र कोई राजनीति जैसा..
वर्चस्व ज़माने को..
पैसा कमाने को..
कहाँ मिलेगा..
व्यापार कोई ऐसा..
बस करो अब..
फेंकना अपना जाल..
कहीं ना मिल जाए..
जो दे ऐसे को तैसा..!!!"
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इस उपलक्ष्य में कुछ पंक्तियाँ यूँ ही बह चलीं हैं..
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"अस्सी में भी छूटता नहीं..
मोह ये कैसा..
जग सारा छान किया..
ना क्षेत्र कोई राजनीति जैसा..
वर्चस्व ज़माने को..
पैसा कमाने को..
कहाँ मिलेगा..
व्यापार कोई ऐसा..
बस करो अब..
फेंकना अपना जाल..
कहीं ना मिल जाए..
जो दे ऐसे को तैसा..!!!"
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Tuesday, September 25, 2012
'सरकार का दायित्व..'
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यहाँ सरकार का दायित्व क्या है..??
क्या उन्हें चिंता है कि -- कितने गाँवों में पेयजल की व्यवस्था आज भी सुचारू रूप से नहीं हो पायी है; कितने ही होनहार बच्चे व युवा शिक्षा से वंचित हैं; कितने ही किसान ऋण में डूब रहे हैं; कितने ही घरों में आज तक पर्याप्त बिजली नहीं है/शौचालय नहीं है; कितने ही बच्चे, वृद्ध, रोगी सस्ती दवाई के लिए तड़प रहे हैं; कितने ही वृद्ध pension के लिए दर-दर भटक रहे हैं; कितने ही सैनिक सीमा पर दिन-रात अपनी जान दाँव पर लगा रहे हैं; कितने ही गोदाम धान से सड़ रहे हैं; कितने ही जल-कूप सूख रहे हैं; कितनी ही सड़कें टूटी-फूटी हैं और हर दिन कितनों की जीवन-लीला समाप्त कर देतीं हैं; कितने ही गाँव स्वास्थ्यालय/अस्पताल को जीवनभर देख भी नहीं पाते हैं; कितने ही लोग जीवनयापन के लिए मेहनत करते हैं और अपनी कमाई की आधी से ज्यादा राशि 'हफ्ता-वसूली' के नाम पर 'कुछ लोगों' को दे देते हैं; कितने ही लोग एक्सिडेंट में घायल हो अस्पताल पहुँचते हैं सिर्फ ये सुनने के लिए कि 'ये तो police case है, पहले पोलिसे को आने दीजिये', फिर चाहे वो अपनी अंतिम साँसें ही तोड़ दे; कितने ही मासूम जन बम-धमाके में मर जाते हैं और कोई उन आतंकवादियों को कभी पकड़ ही नहीं पाता है, कितने ही बच्चे अनाथ हो जाते हैं और स्त्रियाँ विधवा; कितने ही कागज़ी खेल खेले जाते हैं, हर साल नयी नीतियाँ बनतीं हैं और हर साल नए घपले किये जाते हैं; कितनी ही नदियाँ मैली हो गयीं, सूख गयीं पर कोई उन पर ध्यान ही नहीं केन्द्रित कर पाटा है; कितने ही अरबों रुपैये की रियायत मंत्रियों को दी जाती है(घर, रसोई गैस, बिजली, पानी, फ़ोन, दवाई, हवाई-यात्रा, होटल-व्यवस्था, इत्यादि); कितने ही योग्य छात्र देश में रह सेवा नहीं कर सकते क्यूँकि किसी कारणवश वो योग्य नहीं; कितने ही सैनिक अपना दम तोड़ देते हैं मंत्रियों/गणमान्य लोगों को बचाने के लिए(आखिर उनकी सुरक्षा से बढ़कर कुछ भी नहीं, अगर उन्हें कुछ हुआ तो देश कौन चलाएगा, देश की बागडोर किसके हाथ में जायेगी)....
कितने ही अनगिनत प्रश्न हैं जिनका उत्तर मिलता नहीं, या यूँ कहिये कोई देना चाहता नहीं..बस, पैसा आ गया; बैंक भर गया; जेवर आ गए; चल-अचल संपत्ति आ गयी; जीवन भर की जुगाड़ हो गयी; अब काहे का देश, काहे की जनता..आज तो हम सत्ता में हैं, कल की कल सोचेंगे; आज तो जी भर के लूट लें, जीवन जी लें...कल अगर फिर से आ ना सकें यहाँ तो..???
दुर्भाग्य है हमारा, ऐसी भावना लिए लोग शीर्ष पर आसीन हैं और हम उनके सेवक हैं..जबकि होना इसका उलट चाहिए..!!!
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यहाँ सरकार का दायित्व क्या है..??
क्या उन्हें चिंता है कि -- कितने गाँवों में पेयजल की व्यवस्था आज भी सुचारू रूप से नहीं हो पायी है; कितने ही होनहार बच्चे व युवा शिक्षा से वंचित हैं; कितने ही किसान ऋण में डूब रहे हैं; कितने ही घरों में आज तक पर्याप्त बिजली नहीं है/शौचालय नहीं है; कितने ही बच्चे, वृद्ध, रोगी सस्ती दवाई के लिए तड़प रहे हैं; कितने ही वृद्ध pension के लिए दर-दर भटक रहे हैं; कितने ही सैनिक सीमा पर दिन-रात अपनी जान दाँव पर लगा रहे हैं; कितने ही गोदाम धान से सड़ रहे हैं; कितने ही जल-कूप सूख रहे हैं; कितनी ही सड़कें टूटी-फूटी हैं और हर दिन कितनों की जीवन-लीला समाप्त कर देतीं हैं; कितने ही गाँव स्वास्थ्यालय/अस्पताल को जीवनभर देख भी नहीं पाते हैं; कितने ही लोग जीवनयापन के लिए मेहनत करते हैं और अपनी कमाई की आधी से ज्यादा राशि 'हफ्ता-वसूली' के नाम पर 'कुछ लोगों' को दे देते हैं; कितने ही लोग एक्सिडेंट में घायल हो अस्पताल पहुँचते हैं सिर्फ ये सुनने के लिए कि 'ये तो police case है, पहले पोलिसे को आने दीजिये', फिर चाहे वो अपनी अंतिम साँसें ही तोड़ दे; कितने ही मासूम जन बम-धमाके में मर जाते हैं और कोई उन आतंकवादियों को कभी पकड़ ही नहीं पाता है, कितने ही बच्चे अनाथ हो जाते हैं और स्त्रियाँ विधवा; कितने ही कागज़ी खेल खेले जाते हैं, हर साल नयी नीतियाँ बनतीं हैं और हर साल नए घपले किये जाते हैं; कितनी ही नदियाँ मैली हो गयीं, सूख गयीं पर कोई उन पर ध्यान ही नहीं केन्द्रित कर पाटा है; कितने ही अरबों रुपैये की रियायत मंत्रियों को दी जाती है(घर, रसोई गैस, बिजली, पानी, फ़ोन, दवाई, हवाई-यात्रा, होटल-व्यवस्था, इत्यादि); कितने ही योग्य छात्र देश में रह सेवा नहीं कर सकते क्यूँकि किसी कारणवश वो योग्य नहीं; कितने ही सैनिक अपना दम तोड़ देते हैं मंत्रियों/गणमान्य लोगों को बचाने के लिए(आखिर उनकी सुरक्षा से बढ़कर कुछ भी नहीं, अगर उन्हें कुछ हुआ तो देश कौन चलाएगा, देश की बागडोर किसके हाथ में जायेगी)....
कितने ही अनगिनत प्रश्न हैं जिनका उत्तर मिलता नहीं, या यूँ कहिये कोई देना चाहता नहीं..बस, पैसा आ गया; बैंक भर गया; जेवर आ गए; चल-अचल संपत्ति आ गयी; जीवन भर की जुगाड़ हो गयी; अब काहे का देश, काहे की जनता..आज तो हम सत्ता में हैं, कल की कल सोचेंगे; आज तो जी भर के लूट लें, जीवन जी लें...कल अगर फिर से आ ना सकें यहाँ तो..???
दुर्भाग्य है हमारा, ऐसी भावना लिए लोग शीर्ष पर आसीन हैं और हम उनके सेवक हैं..जबकि होना इसका उलट चाहिए..!!!
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भ्रष्टाचार और लालच ने अपने पैर इतनी सरलता से गहरे जमा लिए हैं कि कितना ही प्रयत्न करें हम असफल ही होंगे..!! आज अगर आपको या मुझे राजनीति में जाने के लिए कहा जाए तो, हम चले भी जायेंगे पर क्या हम स्वयं भी इन व्यसनों से बच पायेंगे(या यूँ कहें कि बचे रहने दिए जायेंगे)..??? आप किसी भी क्षेत्र में जाइए बिना पैसे खिलाये कोई काम नहीं होता है(या ऐसा कहना उचित होगा कि करने ही नहीं दिया जाता है)...
राष्ट्र-नेताओं ने अपने इस जीवन-काल में कितने ही काल (वर्तमान एवं भविष्य) के लिए व्यवस्था कर ली है..सात पुश्तें तो क्या अपने दूर-दराज़ के संबंधियों तक के लिए जमा-पूँजी तैयार है..इस का उदहारण नीचे दिए गए लिंक और वहाँ लिखे तथ्यों से मिलता है..
---
http://www.thehindu.com/business/Economy/article3539521.ece
The total overseas funds in Switzerland’s banking system stood at 1.53 trillion Swiss francs (about Rs. 90 trillion) at the end of 2011, which included 2.18 billion Swiss francs (Rs. 12,700 crore) belonging to Indian individuals and entities.SNB’s figures do not include the money that Indians or other nationals might have in Swiss banks in others’ names. The total funds held by Indian individuals and entities include 2.025 billion Swiss francs held directly by them and 158 million held through ‘fiduciaries’ or wealth managers.Amid allegations of Indians stashing huge amounts of illicit wealth abroad, including in Swiss banks, the government says it is making various efforts to bring back the unaccounted money.
As per SNB data, funds held by Indians directly in the Swiss banks increased by about 370 million Swiss francs to 2.025 billion Swiss francs (Rs 11,800 crore) in २०११.
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सब मज़ा लूटिये, जब तक शासन में है..कल किसने देखा है..??
आज तो पेड़ जिंदा हैं, जल्दी से फल खाओ..कोई बीच में आये तो एक-आध उसको भी दे दो.. अन्यथा दामन भर लो इन पेड़ों के फल से..कल अगर निष्कासित हो गए तो हमे कौन सँभालेगा और अगर जेल-वेळ हो गयी तो और भी दिक्कत..!! क्यूँकी जेल में भी जो ज्यादा पेड़ वाला होता है उसी का आदर-सत्कार भली-भाँति होता है..नहीं तो कौन पूछेगा इन्हें..??
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भ्रष्टाचार और लालच ने अपने पैर इतनी सरलता से गहरे जमा लिए हैं कि कितना ही प्रयत्न करें हम असफल ही होंगे..!! आज अगर आपको या मुझे राजनीति में जाने के लिए कहा जाए तो, हम चले भी जायेंगे पर क्या हम स्वयं भी इन व्यसनों से बच पायेंगे(या यूँ कहें कि बचे रहने दिए जायेंगे)..??? आप किसी भी क्षेत्र में जाइए बिना पैसे खिलाये कोई काम नहीं होता है(या ऐसा कहना उचित होगा कि करने ही नहीं दिया जाता है)...
राष्ट्र-नेताओं ने अपने इस जीवन-काल में कितने ही काल (वर्तमान एवं भविष्य) के लिए व्यवस्था कर ली है..सात पुश्तें तो क्या अपने दूर-दराज़ के संबंधियों तक के लिए जमा-पूँजी तैयार है..इस का उदहारण नीचे दिए गए लिंक और वहाँ लिखे तथ्यों से मिलता है..
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http://www.thehindu.com/business/Economy/article3539521.ece
The total overseas funds in Switzerland’s banking system stood at 1.53 trillion Swiss francs (about Rs. 90 trillion) at the end of 2011, which included 2.18 billion Swiss francs (Rs. 12,700 crore) belonging to Indian individuals and entities.SNB’s figures do not include the money that Indians or other nationals might have in Swiss banks in others’ names. The total funds held by Indian individuals and entities include 2.025 billion Swiss francs held directly by them and 158 million held through ‘fiduciaries’ or wealth managers.Amid allegations of Indians stashing huge amounts of illicit wealth abroad, including in Swiss banks, the government says it is making various efforts to bring back the unaccounted money.
As per SNB data, funds held by Indians directly in the Swiss banks increased by about 370 million Swiss francs to 2.025 billion Swiss francs (Rs 11,800 crore) in २०११.
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सब मज़ा लूटिये, जब तक शासन में है..कल किसने देखा है..??
आज तो पेड़ जिंदा हैं, जल्दी से फल खाओ..कोई बीच में आये तो एक-आध उसको भी दे दो.. अन्यथा दामन भर लो इन पेड़ों के फल से..कल अगर निष्कासित हो गए तो हमे कौन सँभालेगा और अगर जेल-वेळ हो गयी तो और भी दिक्कत..!! क्यूँकी जेल में भी जो ज्यादा पेड़ वाला होता है उसी का आदर-सत्कार भली-भाँति होता है..नहीं तो कौन पूछेगा इन्हें..??
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Saturday, September 22, 2012
'पैसे पेड़ पर नहीं नहीं उगते..'
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'पैसे पेड़ पर नहीं नहीं उगते', एकदम दुरुस्त फ़रमाया माननीय प्रधानमंत्री जी ने.. हम जैसे आम आदमी क्या जाने पैसे क्या होते हैं..?? हम थोड़े ही देखें हैं million trillion zillion Dollars .. हम क्या जाने कितनी पीड़ा उठती है उनके मन में जब चाह कर भी अपने स्विज़ खाते में पैसे नहीं जमा करा पा रहे..!! हमारे CAG महोदय जी ने बहुत गलत बात करी, क्या आवश्यकता थी उन्हें ऐसी रिपोर्ट बनाने की..?? क्या आवश्यकता थी सारे नेताओं का कच्चा चिट्ठा खोल देने वाली हिमाकत करने की..??? कितनी कठिनाई से कुछ घोटाले किये थे, वो भी जग जाहिर हो गए..!! आखिर कहाँ जाएँ बेचारे..??
सच, पैसे पेड़ पर नहीं उगते..!! अगर उगते होते तो माननीय प्रधानमंत्री को राष्ट्र को संबोधित नहीं करना पड़ता..उसके सामने हाथ नहीं पसारने पड़ते कि - 'देशवासियों, ये जो CAG है ना..इसने हमारा जीना दूभर कर दिया है..कृपया हमारी मदद करिए..!! आखिर कहाँ से लायें हम पैसा..आपने जो हमारे पेड़(2G , Commonwealth , Coal , इत्यादि) काट डाले हैं, कहाँ जायेंगे हम..?? कैसे अपने परिवार का लालन-पोषण करेंगे..??
क्यूँ दीदी उन्हें सब्ज़ियों, डीज़ल, रसोई गैस के दाम नहीं बढ़ाने नहीं देतीं..?? कितना अच्छा होता, वो स्वयं भी खातीं और बाकी सबको भी खाने देंतीं..!!
आम जनता से जन-हित, देश-हित, राष्ट्रनेता-हित में अनुरोध है, 'कृपया इन सर्वजन को आराम से नए पेड़ उगाने का मौका दीजिये, स्वयं भी सुखी रहिये इन्हें भी सुखी एवं प्रसन्नचित्त रहने दीजिये..!!'
सादर धन्यवाद..!!
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Tuesday, August 28, 2012
...
"माँ माँगती है..
लेखा-जोखा..
छलनी होती..
हर क्षण..
करुणामयी झोली..
जिसकी..
क्या कोई व्यंग..
सुशोभित कर सकेगा..
इसका धराताल..
कब तक बिकेगी..
अपने *जन-कर से..
मर्यादा की थाल..
कब तक सजेगी..
चिता मानवीय-मूल्यों की..
पहन विश्वास की खाल..
लज्जाती क्यूँ नहीं..
ए-मानुष तेरी नयन-धार..
लुटती संस्कृति डाल-डाल..!!"
*जन-कर = संतान के हाथ..
...
प्रियंकाभिलाषी..
२८-०८१-२०१२..
Monday, August 27, 2012
Sunday, August 12, 2012
आप दूसरे खेलों की तरफ ध्यान ही नहीं लगायेंगे तो कहाँ से उनका उद्धार होगा..?? मेरा विचार है कि क्रिकेट को ही अपना राष्ट्रीय खेल बना लेना चाहिए..कम से कम राष्ट्र सम्मान तो सुरक्षित रहेगा..!!!
यहाँ दूसरे खेलों को जिस निर्ममता से अग्निकुंड में भस्म किया जाता है, उन सब की कोई होड़ नहीं..!!! क्यूँ ऐसा वातावरण नहीं बनाया जाता जहाँ पर हर खेल को प्रोत्साहित किया जाए, ज़रूरतमंद खिलाड़ियों को सुविधाएं दीं जाएँ..??
सरकार पहले अपनी गद्दी तो जमा लें, मन भर के धन बटोर ले..फिर सोचेगी अगले चुनाव में कैसे वापस आया जाए..?? कब बदलाव आएगा..?? कब विचार-शैली बदलेगी..?? कब हम राष्ट्र-हित में सोचेंगे और कदम आगे बदयेंगे..?? कब उन्नति का बीज हमारे दिमाग में उगेगा, जिससे देश की आर्थिक-स्थिति और मज़बूत हो..???
आखिर कब होगा ये सब..??? कभी होगा भी या नहीं.???
यहाँ दूसरे खेलों को जिस निर्ममता से अग्निकुंड में भस्म किया जाता है, उन सब की कोई होड़ नहीं..!!! क्यूँ ऐसा वातावरण नहीं बनाया जाता जहाँ पर हर खेल को प्रोत्साहित किया जाए, ज़रूरतमंद खिलाड़ियों को सुविधाएं दीं जाएँ..??
सरकार पहले अपनी गद्दी तो जमा लें, मन भर के धन बटोर ले..फिर सोचेगी अगले चुनाव में कैसे वापस आया जाए..?? कब बदलाव आएगा..?? कब विचार-शैली बदलेगी..?? कब हम राष्ट्र-हित में सोचेंगे और कदम आगे बदयेंगे..?? कब उन्नति का बीज हमारे दिमाग में उगेगा, जिससे देश की आर्थिक-स्थिति और मज़बूत हो..???
आखिर कब होगा ये सब..??? कभी होगा भी या नहीं.???
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