क्या क्या बांटने को कहती हैं। जिनका मोल ही नहीं मिलता, या जिनका मोल करने वाले नही मिलते। बस अपनी छाती से थाती की तरह हम लगाकर रखे रहते हैं। आदर्श और व्यवहार कभी कभी एक दूसरे के विपरित खड़े नजर आते हैं आजकल तो। चंद लाइन, बेहतरीन लाइन
धन्यवाद 'बोले तो बिंदास' जी..!!
bahut sunder....saarthak..keep writing
धनयवाद नीलांश जी..!!
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क्या क्या बांटने को कहती हैं। जिनका मोल ही नहीं मिलता, या जिनका मोल करने वाले नही मिलते। बस अपनी छाती से थाती की तरह हम लगाकर रखे रहते हैं। आदर्श और व्यवहार कभी कभी एक दूसरे के विपरित खड़े नजर आते हैं आजकल तो।
चंद लाइन, बेहतरीन लाइन
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