Tuesday, January 18, 2011
'दरिंदगी का कारोबार..'
जीवन की भौतिक विलासता ने अपने पैर मजबूती से पसार लिए हैं..इसका भुगतान पर्यावरण को अपनी देह का त्याग करके चुकाना पड़ रहा है..!!
...
"टंगे हैं जिस्म पर..
ख्व़ाब कई..
छिल गयी है..
रूह की ज़मीं भी..
अब तो..
बंद करो..
दरिंदगी का कारोबार...!!"
...
*इस चित्र का श्रेय हमारे मित्र, श्री ओमेन्द्र जी को जाता है..!! सादर धन्यवाद..!!
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10 comments:
क्षणिका में बहुत अच्छा सन्देश दिया है आपने!
bahut sundar aur sateek abhivyakti
सन्देश देती हुई अच्छी क्षणिका
बहुत सुन्दर क्षणिका।
धन्यवाद मयंक साहब.!!
धन्यवाद निर्मला कपिला जी..!!
धन्यवाद संगीता आंटी..!!
धन्यवाद वन्दना जी..!!
bahut acchi khsanika...
keep writing
धनयवाद नीलांश जी..!!
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