इन बेतुके दिवसों का महत्व..अजीब संयोग है..हर कोई हर तरफ आज के दिन सो-कॉल्ड इंटरनेशनल वीमेन'स डे के सन्दर्भ में लिख रहा है..??
बात इतनी सी है..किसी को यहाँ कोई फर्क नहीं पड़ता और किसी में भी किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आने वाला.. ये सब तो दुनिया के लिए दिखावा है, marketing tacts होते हैं..और वैसे भी हम सबको आदत होती है, भेड़-चाल की..!!!!
ना ही महिलायों के खिलाफ कोई अपराध कम होने वाले हैं और ना ही सोच बदलने वाली है.. वो 'वास्तु-मात्र' मानी जाती हैं..जब तक स्वयं नारी अपनी रक्षा, सुरक्षा और सम्मान के लिए नहीं उठेगी, लड़ेगी...कुछ नहीं बदलेगा...कुछ भी नहीं..
.सम्मान करना है तो हर दिन हर क्षण करिए...सिर्फ एक दिन ही क्यूँ निर्धारित किया जाता है..??
यहाँ कोई परवाह नहीं करता.. अगर कोई लड़का किसी लड़की को छेड़ रहा होता है..तो भी आस-पास वाले लोग सोचते हैं--हमें क्या करना..?? क्यूँ मुसीबत मोल लें..?? कौन बीच में पड़े अपने खुद ही बहुत झंझट हैं..??? पर वो ये भूल जाते हैं..कल कोई अपना भी इस का शिकार हो सकता है..वो एक छोटा-सा पौधा स्वरुप विचार एक ठोस मनोवृति बन जाता है.. फिर, बार-बार ऐसे करना आदत में ही शामिल हो जाता है..
किसी भी मसले का हल..घर से ही निकल सकता है, आपकी जड़ों से ही..!! कार्य कठिन है..पर संभव होने कि शक्ति भी स्वयं में समाहित रखता है..
इंटरनेशनल वीमेन'स डे को भूल जाना ही बेहतर है.. जब तक हम कुछ कर नहीं सकते उनके लिए, तो ये सब झूठे दिखावे भी ना करें..!!!
और हाँ, नारियों से भी निवेदन हैं..अपना हर दिन..हर क्षण पूर्ण आत्म-सम्मान और अपनी ही इच्छा अनुरूप जीयें, ना कि इस एक दिन के दिखावे पर मोहित हों..
Friday, March 8, 2013
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