Saturday, November 27, 2010

'विलुप्त आदर्शों का चित्रण..'

आज के परिवेश में घटते आदर्शों..मूल्यों पर चिंतन..

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"सुनो..जीवन की सच्चाई..
हर क्षण बिकती अच्छाई..
विलुप्त आदर्शों का चित्रण..
बेहतर..बाँट लें यह रुबाई..!!"


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4 comments:

Rohit Singh said...

क्या क्या बांटने को कहती हैं। जिनका मोल ही नहीं मिलता, या जिनका मोल करने वाले नही मिलते। बस अपनी छाती से थाती की तरह हम लगाकर रखे रहते हैं। आदर्श और व्यवहार कभी कभी एक दूसरे के विपरित खड़े नजर आते हैं आजकल तो।

चंद लाइन, बेहतरीन लाइन

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद 'बोले तो बिंदास' जी..!!

नीलांश said...

bahut sunder....saarthak..
keep writing

priyankaabhilaashi said...

धनयवाद नीलांश जी..!!