Thursday, February 24, 2011

स्वदेशी और स्वरोजगार--आज के इस युग में क्या संभव है..??




कुछ प्रश्न हमे स्वयं से पूछने होंगे..! क्या हम स्वदेशी सामान 'सम्मान ' की दृष्टि से देखते हैं..?? आज आप कहीं भी जाइए..किसी भी वस्तु को उठा लीजिये..सब पर विदेशी छाया है..!! आप वस्त्र की बात करें, खाने-पीने की बात करें, विधुत-यंत्रों की बात करें, चल संपत्ति की बात करें...सब पर 'विदेशी-रंग' चढ़ा है..!!!!

कैसे क्या संभव हो सकेगा..?? आज का युवा स्वयं को गर्वित समझाता है..अगर उसने कोई विदेशी वस्तु का तमगा पहन रखा है..!! भारतीय सभ्यता अपना मूल-रंग और रूप खो रही है..हमारे लिये विदेशी आचार-विचार बहुत महत्वपूर्ण हैं..फिर चाहे वह नव-वर्ष का उत्सव हो या किसी के प्रति अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिये एक विशेष दिवस..!!!

क्या हम कभी इस विचारधारा से उभर पायेंगे..???

स्व-रोज़गार की बात ..क्या आज के युवक के लिये संभव है..कि वो अपनी बढ़ती हुई आवश्यकता के लिये ऐसे-वैसे काम ना करें.. 'वैश्वीकरण' का भुगतान/हर्जाना सबको ही भरना पड़ता है और पड़ेगा..!!!



चलिए श्री गणेश करना है..एक विचारणीय और महत्वपूर्ण बात--सिर्फ यहाँ मंथन करने से कुछ नहीं होगा..नीतियाँ और सूत्रों से परिपूर्ण कार्यक्रम की रूपरेखा तो हर दूसरे दिवस यहाँ बनतीं हैं..बस कार्य करना भूल जाते हैं..!!

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