Saturday, March 26, 2011
'मनोदशा का खेल..'
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पैसा, भावना और शब्द..यह सब क्या किसी व्यक्ति के स्वभाव को बदल सकते हैं..?? जिसके अंतर्मन की जैसी स्थिति है..वो वैसे ही रहेगी..बस तरीका बदलता है..!!
अंबानी जी स्वयं पैसा कमा रहे हैं..खर्च कर रहे हैं..तो जनता क्यूँ व्यथित हो रही है..?? चाहे वो गगनचुम्बी ईमारत में रहें या अपनी श्रीमती जी को हवाईजाहज भेंट करें..क्यूँ यहाँ सबके माथे पर बल आ जाते हैं..?? उनकी संपत्ति..उनका नजरिया..जैसे चाहें उपयोग करें..!!
जिसे देखो दूसरों की ख़ुशी से बिफर जाते हैं..अब श्रीमान वारेन बुफ्फेट को ही लीजिये..!!! भारत में बढ़ते अरबपतियों की चिंता उन्हें सता रही है..इसीलिए यहाँ यात्रा पर आयें हैं और सबको कह रहे हैं--'कृपया अपनी संपत्ति में से दान करिए..!!'...
जिसकी जैसी इच्छा..वो चाहें दान करें..उपभोग करें..किसी को क्यूँ परेशानी होती है..!!! और भारत जैसे देश में आकर यह कहना कितना उचित है..जहाँ सम्राट अशोक ने सर्वस्व त्याग दिया था..!!!! त्याग की प्रवृति तो हमारे लहू में है..!!!
क्या हम कभी अपने नेतागण से कहते हैं--'आपने बहुत धन कमा लिया..आप के पास इतनी चल-अचल संपत्ति है..अब दान कीजिये..!!! आप अब विदेश भ्रमण पर ना जाएँ..कहाँ-कहाँ धन एकत्रित किया है, रोकड़ का हिसाब दें..अपने क्षेत्र का कितना विकास किया, उसका ब्यौरा दें...!!!'
सब हमारी मनोदशा का खेल है..!!! क्यूँ हम प्रसन्न नहीं रह सकते, अगर किसी के पास ज्यादा धन है..समृद्धि है..????
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Monday, March 21, 2011
'राष्ट्रीय खेल इस 'अद्भुत खेल' की भेंट चढ़ जाएगा..'
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सबसे पहले आप राजनीति में समय की सीमा तय करवा दीजिये..उसके बाद सब कुछ लय में अपने आप आ जाएगा..!! इस सत्ता का मोह ऐसा है कि हर क्षेत्र में इसका(राजनीति में प्रयोगिग अनुसंधानिक नीतियाँ) बोलबाला है..!!!
खेल के क्षेत्र में..शिक्षा के क्षेत्र में..रोज़गार के क्षेत्र में जाइए..या फिर भोजन के सन्दर्भ में..सारी दिशाएँ इस प्रलोभन के चंगुल में फँस गए हैं..!!! जो भी एक बार यहाँ आ गया, वो बाहर जाना ही नहीं चाहता..!! 'कुर्सी' का मोह ऐसा है कि --'जान जाए पर कुर्सी ना जाए..' !!!
कैसा विलासतापूर्ण अध्याय है..जहाँ हम सब देश का विकास चाहते हैं..पर अपने हिस्से का बलिदान नहीं कर सकते..!!! कैसी विडम्बना है..!!! कैसा विधि का कालचक्र घूम रहा है..हम सब लोभ और असहिष्णुता के दलदल में इतने डूब गए हैं, कि स्वयं ही नहीं उबार पा रहे..बाकी संसार/देश के बारे में विचार कहाँ से आयें..????
कितनी योजनायें बनती हैं..कितनी ही समितियां बनायीं जातीं हैं..विचार-मंथन के लिये..!! कितना ही मनुष्य-धन लगाया जाता है..निष्कर्ष भी निकालता है..पर फिर वही 'राग' लक्ष्य से हमारा ध्यान विचलित कर देता है..!!!
खेल क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं..धन भी आवंटित होता है..परन्तु अपने गंतव्य स्थान तक कोई पहुंचता ही नहीं है..!!!! बीच डगर में ही सब समाप्त हो जाता है..!!! हमारे माननीय सत्ताधारी प्रजाति के जन मोहपाश से निकल नहीं पाते..और यह सब अज्ञानतावश हो जाता है..!!!
कुछ समय पश्चात हमारा राष्ट्रीय खेल इस 'अद्भुत खेल' की भेंट चढ़ जाएगा..और स्मृतियाँ ही शेष रहेंगीं..!!!
अब विचार करने और नीतियाँ बनाने का समय नहीं रहा..करने का समय है..!! अन्यथा कुछ शेष नहीं रहेगा..!!!
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Sunday, March 6, 2011
'किसी को कोई फरक नहीं पड़ता..'
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किसी को कोई फरक नहीं पड़ता..सब ही भ्रष्ट हैं..हसन अली जी हों या सुरेश कलमाड़ी जी..थोमस जी या बेचारे खुद मनमोहन जी..सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे..!!! इन सब बातों पर अपनी ऊर्जा का प्रवाह करने से कोई लाभ नहीं..!!
आप क्या कर सकते हैं..?? सरकार हटा सकते हैं..?? महंगाई घटा सकते हैं..?? आम आदमी को रोटी दिला सकते हैं..?? निर्दोष व्यक्ति को न्याय दिला सकते हैं..?? खून-पसीने की गाढ़ी कमाई को व्यवस्थित जगह निवेश कर सकते हैं..??? आम जनता को सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं..?? रोज़गार उपलब्ध करा सकते हैं..??? शिक्षा का समुचित विकास करा सकते हैं..?? शिक्षण संस्थानों का दुरूपयोग रोक सकते हैं..??? 'कर' को दूसरे देशों में जाने से रोक सकते हैं..?? एक ऐसा संगठन बना सकते हैं, जहाँ शुद्ध स्वरुप में देश के विकास के लिए नीतियाँ बन सकें..??
जाने दीजिये..!! यहाँ दिखता कुछ और है..होता कुछ और है..जो आवाज़ उठता है..वो ही मारा जाता है..!!! सब छलावा है..भ्रम है..!! सब यहाँ स्वार्थ के लिए ही जीते हैं..! जो सत्य की दुशाला पहनेगा, उसे ही व्यर्थ जीवन गँवाना पड़ेगा..!!
यहाँ बैठ कर लिखना और इस गंभीर विषय पर लिखना सरल है, परन्तु उसे निभाना और जीना उतना ही कठिन..!!!
प्रयत्न बहुत करते हैं..सफल हो जाएँ..तब समझें, 'जीवन सफल हुआ..ध्येय पूरा हुआ..!!!'
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"आशा की किरण लिए चलता हूँ..
ह्रदय में ज्योत लिये जलता हूँ..
निश्चय ही मिलेगी जीत की मिठाई..
लहू के धनुष..फौलाद के विचार मलता हूँ..!!"
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जय हिंद..!!!!
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