Monday, March 21, 2011

'राष्ट्रीय खेल इस 'अद्भुत खेल' की भेंट चढ़ जाएगा..'




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सबसे पहले आप राजनीति में समय की सीमा तय करवा दीजिये..उसके बाद सब कुछ लय में अपने आप आ जाएगा..!! इस सत्ता का मोह ऐसा है कि हर क्षेत्र में इसका(राजनीति में प्रयोगिग अनुसंधानिक नीतियाँ) बोलबाला है..!!!

खेल के क्षेत्र में..शिक्षा के क्षेत्र में..रोज़गार के क्षेत्र में जाइए..या फिर भोजन के सन्दर्भ में..सारी दिशाएँ इस प्रलोभन के चंगुल में फँस गए हैं..!!! जो भी एक बार यहाँ आ गया, वो बाहर जाना ही नहीं चाहता..!! 'कुर्सी' का मोह ऐसा है कि --'जान जाए पर कुर्सी ना जाए..' !!!

कैसा विलासतापूर्ण अध्याय है..जहाँ हम सब देश का विकास चाहते हैं..पर अपने हिस्से का बलिदान नहीं कर सकते..!!! कैसी विडम्बना है..!!! कैसा विधि का कालचक्र घूम रहा है..हम सब लोभ और असहिष्णुता के दलदल में इतने डूब गए हैं, कि स्वयं ही नहीं उबार पा रहे..बाकी संसार/देश के बारे में विचार कहाँ से आयें..????

कितनी योजनायें बनती हैं..कितनी ही समितियां बनायीं जातीं हैं..विचार-मंथन के लिये..!! कितना ही मनुष्य-धन लगाया जाता है..निष्कर्ष भी निकालता है..पर फिर वही 'राग' लक्ष्य से हमारा ध्यान विचलित कर देता है..!!!

खेल क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं..धन भी आवंटित होता है..परन्तु अपने गंतव्य स्थान तक कोई पहुंचता ही नहीं है..!!!! बीच डगर में ही सब समाप्त हो जाता है..!!! हमारे माननीय सत्ताधारी प्रजाति के जन मोहपाश से निकल नहीं पाते..और यह सब अज्ञानतावश हो जाता है..!!!

कुछ समय पश्चात हमारा राष्ट्रीय खेल इस 'अद्भुत खेल' की भेंट चढ़ जाएगा..और स्मृतियाँ ही शेष रहेंगीं..!!!

अब विचार करने और नीतियाँ बनाने का समय नहीं रहा..करने का समय है..!! अन्यथा कुछ शेष नहीं रहेगा..!!!


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