Friday, October 14, 2011

'चलो.. तर्पण करें..'

...


"बिछा लहू की दीवारें..
समेट सामंतवाद के औज़ार..
लूटा भ्रष्टाचार के कतारें..
जला अंधविश्वास के गलियारे..

चलो..
निर्माण करेंगे..
एक सुरमई धरती का..
एक विशाल इतिहास का..
जीवन के हर उल्लास का..

चलो..
तर्पण करें..
'अहम्' को..
सर्वेश हो..
मातृभूमि फिर..

चलो..
स्वरुप करें जीवंत..
लिखें नयी लेखनी..
हो मानवता का सम्मान..
स्वच्छ मानसिकता..

चलो..
बढे चलो..
भारत-माँ की सुनो पुकार..
करो..
शत्रुओं का संहार..!!!"


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6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

रश्मि प्रभा... said...

चलो..
तर्पण करें..
'अहम्' को..
सर्वेश हो..
मातृभूमि फिर..
aameen

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद मयंक साहब..!!!

priyankaabhilaashi said...

धन्यवाद रश्मि प्रभा जी..!!

SANDEEP PANWAR said...

बेहतरीन लिखा है, अच्छे शब्द

Unknown said...

शत्रुओं के संहार..की अभिलाषा शब्दों में कूट-कूट कर भरी हुई है...सार्थक प्रस्तुति