Monday, January 7, 2013

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ना किसी में हिम्मत है..ना किसी के पास जिगर है.. दो दिन के लिए ये सारे ज्वालामुखी उबलते हैं, फटने का जिगर किसी का भी नहीं है..!! सरकार को या व्यवस्था को दोषी क्यूँ करार दिया जाए, जब हम खुद अपने हितों/ अधिकारों के लिए खड़े ही नहीं हो सकते..लड़ना तो दूर, बहुत दूर, की बात है..!!

शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को झूठा दिलासा देने जैसा ही है, जहाँ हम सब मन के हर छोर में ये तख्ती लटका चुके हैं कि जो भी हो, जैसा भी हो..हम जी लेंगे.. थोड़ा शोर-शराबा करेंगे, दंगा-फ़साद होगा, सरकार घबरायेगी, संविधान को भी उल्टा-सीधा कहा जाएगा, क़ानून की भी धज्जियाँ उड़ेंगी, फिर थोड़े दिन बाद.......सब पहले जैसा हो जाएगा..!!!!!

ये ही किस्मत हमारी है..ये ही हमारी व्यवस्था है..ये ही हमारी भूल है..!!!

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