Monday, January 7, 2013



आक्रोश वहाँ नयी चेतना, नयी क्रान्ति को जन्म देता ही..जहाँ का जन-सैलाब कुछ कर गुजरने का माद्दा रखता है, जहाँ लहू की बूँदें उद्वेलित करती हैं, जहाँ जिगर पर गोलियों से देशभक्ति का जज़्बा बहता है, जहाँ जातिवाद पर हिंसा भड़क देश के अहित में भाषण नहीं होते, जहाँ भाई-भाई देश की तरक्की चाहता है, जहाँ हर स्त्री देश में सुरक्षित महसूस कर देश की अर्थ-व्यवस्था मज़बूत करने में सहयोग देती है, जहाँ राजनीति व्यवसाय नहीं होता, जहाँ राष्ट्र-नेता बंदूकधारियों से अपनी रक्षा नहीं करवाते..


हम सब ऐसे ही हैं--असंवेदनशील, कोई फर्क नहीं पड़ता..कितनी ही लाशें सामने बिछ जायें, कितने ही ज्वार-भाटे आयें, कितने ही बम फटें, कितने ही अपमानित हो जायें हमारा स्त्री-वर्ग, कितना ही गले घुटे हमारे संस्कारों का, कितना ही शोषण हो हमारे बड़े-बुजुर्गों का, कितना ही लूटा जाए गरीबों को/मध्यमवर्गीय परिवारों को, कितनी ही महँगाई बढ़ जाये, कितनी ही लूट-पाट हो जाये..............पर हमें फर्क नहीं पड़ेगा..हम सब ऐसे ही हैं और रहेंगे..!!!

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