Monday, October 14, 2013


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"सर जी..आप सदैव सत्य लिखते हैं..
देश की राजनीतिक बीमारी पर तीर कसते हैं..

आज मुझे..ज़रा ये भी तो बताइए..
कितने यहाँ आपकी-मेरी बात सुनते हैं..

क्यूँ उनको असर होता नहीं..
शहीद उनका कोई होता नहीं..

क्या फितरत हो चली राष्ट्र-नेताओं की..
बिन पैसे कुछ होता नहीं..

आखिर कब तक ये किस्सा चलेगा..
आखिर कब तक इन्साफ बिकेगा..

न कल कुछ हुआ है..ना आगे कुछ होगा..
६६ वर्ष बाद भी असह्य-सा देश-ह्रदय होगा..

चीरते हैं अपने ही कुछ पाक-पुजारी..
कितनी रातें सैनिकों ने जागे गुजारीं..

कौन लिखेगा ऐसी क़ुरबानी..
बाकी कहाँ खून में रवानी..

शर्मिंदा हूँ..न रख सका भारत-माँ की लाज..
ए-माँ..गुनाह मेरा भी है..न करना मुझे माफ़..!!"

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---एक माननीय महोदय के शब्दों पर कुछ यूँ ही हमारे भी शब्द चल पड़े..

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