माननीय प्रधानमंत्री के अस्सी वर्ष पूर्ण करने के मंगल दिवस पर उनको ढ़ेर सारी मंगल-कामनायें..!!
इस उपलक्ष्य में कुछ पंक्तियाँ यूँ ही बह चलीं हैं..
...
"अस्सी में भी छूटता नहीं..
मोह ये कैसा..
जग सारा छान किया..
ना क्षेत्र कोई राजनीति जैसा..
वर्चस्व ज़माने को..
पैसा कमाने को..
कहाँ मिलेगा..
व्यापार कोई ऐसा..
बस करो अब..
फेंकना अपना जाल..
कहीं ना मिल जाए..
जो दे ऐसे को तैसा..!!!"
...
Thursday, September 27, 2012
Tuesday, September 25, 2012
'सरकार का दायित्व..'
---
यहाँ सरकार का दायित्व क्या है..??
क्या उन्हें चिंता है कि -- कितने गाँवों में पेयजल की व्यवस्था आज भी सुचारू रूप से नहीं हो पायी है; कितने ही होनहार बच्चे व युवा शिक्षा से वंचित हैं; कितने ही किसान ऋण में डूब रहे हैं; कितने ही घरों में आज तक पर्याप्त बिजली नहीं है/शौचालय नहीं है; कितने ही बच्चे, वृद्ध, रोगी सस्ती दवाई के लिए तड़प रहे हैं; कितने ही वृद्ध pension के लिए दर-दर भटक रहे हैं; कितने ही सैनिक सीमा पर दिन-रात अपनी जान दाँव पर लगा रहे हैं; कितने ही गोदाम धान से सड़ रहे हैं; कितने ही जल-कूप सूख रहे हैं; कितनी ही सड़कें टूटी-फूटी हैं और हर दिन कितनों की जीवन-लीला समाप्त कर देतीं हैं; कितने ही गाँव स्वास्थ्यालय/अस्पताल को जीवनभर देख भी नहीं पाते हैं; कितने ही लोग जीवनयापन के लिए मेहनत करते हैं और अपनी कमाई की आधी से ज्यादा राशि 'हफ्ता-वसूली' के नाम पर 'कुछ लोगों' को दे देते हैं; कितने ही लोग एक्सिडेंट में घायल हो अस्पताल पहुँचते हैं सिर्फ ये सुनने के लिए कि 'ये तो police case है, पहले पोलिसे को आने दीजिये', फिर चाहे वो अपनी अंतिम साँसें ही तोड़ दे; कितने ही मासूम जन बम-धमाके में मर जाते हैं और कोई उन आतंकवादियों को कभी पकड़ ही नहीं पाता है, कितने ही बच्चे अनाथ हो जाते हैं और स्त्रियाँ विधवा; कितने ही कागज़ी खेल खेले जाते हैं, हर साल नयी नीतियाँ बनतीं हैं और हर साल नए घपले किये जाते हैं; कितनी ही नदियाँ मैली हो गयीं, सूख गयीं पर कोई उन पर ध्यान ही नहीं केन्द्रित कर पाटा है; कितने ही अरबों रुपैये की रियायत मंत्रियों को दी जाती है(घर, रसोई गैस, बिजली, पानी, फ़ोन, दवाई, हवाई-यात्रा, होटल-व्यवस्था, इत्यादि); कितने ही योग्य छात्र देश में रह सेवा नहीं कर सकते क्यूँकि किसी कारणवश वो योग्य नहीं; कितने ही सैनिक अपना दम तोड़ देते हैं मंत्रियों/गणमान्य लोगों को बचाने के लिए(आखिर उनकी सुरक्षा से बढ़कर कुछ भी नहीं, अगर उन्हें कुछ हुआ तो देश कौन चलाएगा, देश की बागडोर किसके हाथ में जायेगी)....
कितने ही अनगिनत प्रश्न हैं जिनका उत्तर मिलता नहीं, या यूँ कहिये कोई देना चाहता नहीं..बस, पैसा आ गया; बैंक भर गया; जेवर आ गए; चल-अचल संपत्ति आ गयी; जीवन भर की जुगाड़ हो गयी; अब काहे का देश, काहे की जनता..आज तो हम सत्ता में हैं, कल की कल सोचेंगे; आज तो जी भर के लूट लें, जीवन जी लें...कल अगर फिर से आ ना सकें यहाँ तो..???
दुर्भाग्य है हमारा, ऐसी भावना लिए लोग शीर्ष पर आसीन हैं और हम उनके सेवक हैं..जबकि होना इसका उलट चाहिए..!!!
---
यहाँ सरकार का दायित्व क्या है..??
क्या उन्हें चिंता है कि -- कितने गाँवों में पेयजल की व्यवस्था आज भी सुचारू रूप से नहीं हो पायी है; कितने ही होनहार बच्चे व युवा शिक्षा से वंचित हैं; कितने ही किसान ऋण में डूब रहे हैं; कितने ही घरों में आज तक पर्याप्त बिजली नहीं है/शौचालय नहीं है; कितने ही बच्चे, वृद्ध, रोगी सस्ती दवाई के लिए तड़प रहे हैं; कितने ही वृद्ध pension के लिए दर-दर भटक रहे हैं; कितने ही सैनिक सीमा पर दिन-रात अपनी जान दाँव पर लगा रहे हैं; कितने ही गोदाम धान से सड़ रहे हैं; कितने ही जल-कूप सूख रहे हैं; कितनी ही सड़कें टूटी-फूटी हैं और हर दिन कितनों की जीवन-लीला समाप्त कर देतीं हैं; कितने ही गाँव स्वास्थ्यालय/अस्पताल को जीवनभर देख भी नहीं पाते हैं; कितने ही लोग जीवनयापन के लिए मेहनत करते हैं और अपनी कमाई की आधी से ज्यादा राशि 'हफ्ता-वसूली' के नाम पर 'कुछ लोगों' को दे देते हैं; कितने ही लोग एक्सिडेंट में घायल हो अस्पताल पहुँचते हैं सिर्फ ये सुनने के लिए कि 'ये तो police case है, पहले पोलिसे को आने दीजिये', फिर चाहे वो अपनी अंतिम साँसें ही तोड़ दे; कितने ही मासूम जन बम-धमाके में मर जाते हैं और कोई उन आतंकवादियों को कभी पकड़ ही नहीं पाता है, कितने ही बच्चे अनाथ हो जाते हैं और स्त्रियाँ विधवा; कितने ही कागज़ी खेल खेले जाते हैं, हर साल नयी नीतियाँ बनतीं हैं और हर साल नए घपले किये जाते हैं; कितनी ही नदियाँ मैली हो गयीं, सूख गयीं पर कोई उन पर ध्यान ही नहीं केन्द्रित कर पाटा है; कितने ही अरबों रुपैये की रियायत मंत्रियों को दी जाती है(घर, रसोई गैस, बिजली, पानी, फ़ोन, दवाई, हवाई-यात्रा, होटल-व्यवस्था, इत्यादि); कितने ही योग्य छात्र देश में रह सेवा नहीं कर सकते क्यूँकि किसी कारणवश वो योग्य नहीं; कितने ही सैनिक अपना दम तोड़ देते हैं मंत्रियों/गणमान्य लोगों को बचाने के लिए(आखिर उनकी सुरक्षा से बढ़कर कुछ भी नहीं, अगर उन्हें कुछ हुआ तो देश कौन चलाएगा, देश की बागडोर किसके हाथ में जायेगी)....
कितने ही अनगिनत प्रश्न हैं जिनका उत्तर मिलता नहीं, या यूँ कहिये कोई देना चाहता नहीं..बस, पैसा आ गया; बैंक भर गया; जेवर आ गए; चल-अचल संपत्ति आ गयी; जीवन भर की जुगाड़ हो गयी; अब काहे का देश, काहे की जनता..आज तो हम सत्ता में हैं, कल की कल सोचेंगे; आज तो जी भर के लूट लें, जीवन जी लें...कल अगर फिर से आ ना सकें यहाँ तो..???
दुर्भाग्य है हमारा, ऐसी भावना लिए लोग शीर्ष पर आसीन हैं और हम उनके सेवक हैं..जबकि होना इसका उलट चाहिए..!!!
---
...
भ्रष्टाचार और लालच ने अपने पैर इतनी सरलता से गहरे जमा लिए हैं कि कितना ही प्रयत्न करें हम असफल ही होंगे..!! आज अगर आपको या मुझे राजनीति में जाने के लिए कहा जाए तो, हम चले भी जायेंगे पर क्या हम स्वयं भी इन व्यसनों से बच पायेंगे(या यूँ कहें कि बचे रहने दिए जायेंगे)..??? आप किसी भी क्षेत्र में जाइए बिना पैसे खिलाये कोई काम नहीं होता है(या ऐसा कहना उचित होगा कि करने ही नहीं दिया जाता है)...
राष्ट्र-नेताओं ने अपने इस जीवन-काल में कितने ही काल (वर्तमान एवं भविष्य) के लिए व्यवस्था कर ली है..सात पुश्तें तो क्या अपने दूर-दराज़ के संबंधियों तक के लिए जमा-पूँजी तैयार है..इस का उदहारण नीचे दिए गए लिंक और वहाँ लिखे तथ्यों से मिलता है..
---
http://www.thehindu.com/business/Economy/article3539521.ece
The total overseas funds in Switzerland’s banking system stood at 1.53 trillion Swiss francs (about Rs. 90 trillion) at the end of 2011, which included 2.18 billion Swiss francs (Rs. 12,700 crore) belonging to Indian individuals and entities.SNB’s figures do not include the money that Indians or other nationals might have in Swiss banks in others’ names. The total funds held by Indian individuals and entities include 2.025 billion Swiss francs held directly by them and 158 million held through ‘fiduciaries’ or wealth managers.Amid allegations of Indians stashing huge amounts of illicit wealth abroad, including in Swiss banks, the government says it is making various efforts to bring back the unaccounted money.
As per SNB data, funds held by Indians directly in the Swiss banks increased by about 370 million Swiss francs to 2.025 billion Swiss francs (Rs 11,800 crore) in २०११.
--
सब मज़ा लूटिये, जब तक शासन में है..कल किसने देखा है..??
आज तो पेड़ जिंदा हैं, जल्दी से फल खाओ..कोई बीच में आये तो एक-आध उसको भी दे दो.. अन्यथा दामन भर लो इन पेड़ों के फल से..कल अगर निष्कासित हो गए तो हमे कौन सँभालेगा और अगर जेल-वेळ हो गयी तो और भी दिक्कत..!! क्यूँकी जेल में भी जो ज्यादा पेड़ वाला होता है उसी का आदर-सत्कार भली-भाँति होता है..नहीं तो कौन पूछेगा इन्हें..??
...
भ्रष्टाचार और लालच ने अपने पैर इतनी सरलता से गहरे जमा लिए हैं कि कितना ही प्रयत्न करें हम असफल ही होंगे..!! आज अगर आपको या मुझे राजनीति में जाने के लिए कहा जाए तो, हम चले भी जायेंगे पर क्या हम स्वयं भी इन व्यसनों से बच पायेंगे(या यूँ कहें कि बचे रहने दिए जायेंगे)..??? आप किसी भी क्षेत्र में जाइए बिना पैसे खिलाये कोई काम नहीं होता है(या ऐसा कहना उचित होगा कि करने ही नहीं दिया जाता है)...
राष्ट्र-नेताओं ने अपने इस जीवन-काल में कितने ही काल (वर्तमान एवं भविष्य) के लिए व्यवस्था कर ली है..सात पुश्तें तो क्या अपने दूर-दराज़ के संबंधियों तक के लिए जमा-पूँजी तैयार है..इस का उदहारण नीचे दिए गए लिंक और वहाँ लिखे तथ्यों से मिलता है..
---
http://www.thehindu.com/business/Economy/article3539521.ece
The total overseas funds in Switzerland’s banking system stood at 1.53 trillion Swiss francs (about Rs. 90 trillion) at the end of 2011, which included 2.18 billion Swiss francs (Rs. 12,700 crore) belonging to Indian individuals and entities.SNB’s figures do not include the money that Indians or other nationals might have in Swiss banks in others’ names. The total funds held by Indian individuals and entities include 2.025 billion Swiss francs held directly by them and 158 million held through ‘fiduciaries’ or wealth managers.Amid allegations of Indians stashing huge amounts of illicit wealth abroad, including in Swiss banks, the government says it is making various efforts to bring back the unaccounted money.
As per SNB data, funds held by Indians directly in the Swiss banks increased by about 370 million Swiss francs to 2.025 billion Swiss francs (Rs 11,800 crore) in २०११.
--
सब मज़ा लूटिये, जब तक शासन में है..कल किसने देखा है..??
आज तो पेड़ जिंदा हैं, जल्दी से फल खाओ..कोई बीच में आये तो एक-आध उसको भी दे दो.. अन्यथा दामन भर लो इन पेड़ों के फल से..कल अगर निष्कासित हो गए तो हमे कौन सँभालेगा और अगर जेल-वेळ हो गयी तो और भी दिक्कत..!! क्यूँकी जेल में भी जो ज्यादा पेड़ वाला होता है उसी का आदर-सत्कार भली-भाँति होता है..नहीं तो कौन पूछेगा इन्हें..??
...
Saturday, September 22, 2012
'पैसे पेड़ पर नहीं नहीं उगते..'
---
'पैसे पेड़ पर नहीं नहीं उगते', एकदम दुरुस्त फ़रमाया माननीय प्रधानमंत्री जी ने.. हम जैसे आम आदमी क्या जाने पैसे क्या होते हैं..?? हम थोड़े ही देखें हैं million trillion zillion Dollars .. हम क्या जाने कितनी पीड़ा उठती है उनके मन में जब चाह कर भी अपने स्विज़ खाते में पैसे नहीं जमा करा पा रहे..!! हमारे CAG महोदय जी ने बहुत गलत बात करी, क्या आवश्यकता थी उन्हें ऐसी रिपोर्ट बनाने की..?? क्या आवश्यकता थी सारे नेताओं का कच्चा चिट्ठा खोल देने वाली हिमाकत करने की..??? कितनी कठिनाई से कुछ घोटाले किये थे, वो भी जग जाहिर हो गए..!! आखिर कहाँ जाएँ बेचारे..??
सच, पैसे पेड़ पर नहीं उगते..!! अगर उगते होते तो माननीय प्रधानमंत्री को राष्ट्र को संबोधित नहीं करना पड़ता..उसके सामने हाथ नहीं पसारने पड़ते कि - 'देशवासियों, ये जो CAG है ना..इसने हमारा जीना दूभर कर दिया है..कृपया हमारी मदद करिए..!! आखिर कहाँ से लायें हम पैसा..आपने जो हमारे पेड़(2G , Commonwealth , Coal , इत्यादि) काट डाले हैं, कहाँ जायेंगे हम..?? कैसे अपने परिवार का लालन-पोषण करेंगे..??
क्यूँ दीदी उन्हें सब्ज़ियों, डीज़ल, रसोई गैस के दाम नहीं बढ़ाने नहीं देतीं..?? कितना अच्छा होता, वो स्वयं भी खातीं और बाकी सबको भी खाने देंतीं..!!
आम जनता से जन-हित, देश-हित, राष्ट्रनेता-हित में अनुरोध है, 'कृपया इन सर्वजन को आराम से नए पेड़ उगाने का मौका दीजिये, स्वयं भी सुखी रहिये इन्हें भी सुखी एवं प्रसन्नचित्त रहने दीजिये..!!'
सादर धन्यवाद..!!
---
Subscribe to:
Posts (Atom)